नई दिल्ली : भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद ( Indian Council of Medical Research, ICMR) ने स्कूलों को दोबारा खोलने के लिए चरणबद्ध तरीका (Phased Manner) अपनाने पर जोर दिया है। दरअसल ICMR का नवीनतम अध्ययन सामने आया है जिसमें ये बातें कही गई हैं। वहीं UNESCO की रिपोर्ट के अनुसार 500 से अधिक दिनों तक भारत में स्कूलों के बंद रहने से 32 करोड़ से अधिक बच्चे प्रभावित हुए हैं।
इसमें स्कूलों को खोलने के मुद्दे पर भारत और विदेश से प्राप्त वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर विशेषज्ञों ने कहा है कि स्कूलों में संक्रमण की जांच करने से वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। इसके अलावा विशेषज्ञों के अनुसार अध्यापकों, कर्मचारियों और बच्चों को लाने-ले जाने में शामिल लोगों का टीकाकरण होना चाहिए और उन्हें टीका लगवाने के बाद भी मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। यह उपाय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोना संक्रमण होने या उसके फैलाव से टीकाकरण नहीं रोक सकता है। यह बात बड़ों और बच्चों के लिए समान रूप से सच है।उन्होंने कहा कि विभिन्न उपायों के साथ स्कूल खोलने से न केवल व्यक्तिगत रूप से सीखने की निरंतरता सुनिश्चित होगी बल्कि माता-पिता में यह विश्वास भी पैदा होगा कि स्कूल बच्चों के लिए सुरक्षित हैं।
स्कूलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कमरे हवादार हों साथ ही उन्हें एयर कंडीशनर से परहेज करना चाहिए। संक्रमण के संभावित प्रसार को रोकने के लिए कक्षाओं में एग्जास्ट पंखे लगाए जाने चाहिए। बच्चों को भोजन साझा करने, कैंटीन या डाइनिंग हाल में लंबे समय तक रहने से रोका जाना चाहिए।
आनंद, भार्गव और पांडा ने रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में प्रचारित खुली कक्षाओं का जिक्र करते हुए कहा कि कोरोना ने हमें विशेष रूप से प्रकृति की गोद में नवीन शिक्षण विधियों का पता लगाने और खोजने पर मजबूर किया है।
अध्ययन के अनुसार, 'कोविड-19 महामारी के दौरान लंबे समय तक बंद रहे स्कूलों के कारण प्रभावित बच्चों के विकास को समझना जरूरी है। इसलिए स्कूलों को चरणबद्ध तरीके (सेकेंडरी स्कूल के बाद प्राइमरी स्कूल) से स्कूलों को दोबारा खोला जाना चाहिए। साथ ही उचित एहतियात और अनिवार्य हिदायतों के साथ स्कूलों को खोलकर रखा जाए।' ICMR द्वारा प्रकाशित इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च के लेखक ICMR के डायरेक्टर जनरल डाक्टर बलराम भार्गव (Dr Balram Bhargava), समिरन पांडा (Samiran Panda) और तनु आनंद (Tanu Anand) हैं।
इसके अलावा देश के 15 राज्यों में 1362 घरों पर किए गए एक सर्वे में पता चला है कि गांवों में रहने वाले 8 फीसद और शहरों में रहने वाले केवल 24 फीसद बच्चे ही नियमित तौर पर पढ़ाई कर रहे हैं। यह सर्वे कमजोर तबके के बच्चों पर किया गया। बता दें कि 75 फीसद पैरेंट्स भी इस बात का समर्थन करते हैं कि उनके बच्चों की पढ़ने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा है।
भारत में अभी बच्चों व किशोर वर्ग के लिए कोविड-19 वैक्सीन का ट्रायल जारी है। मौजूदा साक्ष्यों के अनुसार 12 या इससे अधिक उम्र के बच्चों व किशोरों पर कोरोना संक्रमण का खतरा अधिक है। इसलिए इन्हें वैक्सीन लगना जरूरी है। ICMR की ओर से किए गए अध्ययन में स्कूल के सभी स्टाफ व बच्चों के मास्क के इस्तेमाल, सैनिटाइजेशन के प्रोटोकाल समेत तमाम जरूरी कोरोना नियमों के पालन पर जोर दिया गया है।
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