डीएलएड पाठ्यक्रम से घटते मोह ने प्रशिक्षण संस्थानों के अस्तित्व पर खड़ा किया संकट
प्राथमिक शिक्षक भर्ती में बीएड भी लागू होने से डीएलएड से घटता मोह
प्रयागराज : डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजूकेशन (डीएलएड) पाठ्यक्रम से घटते युवाओं के मोह ने प्रशिक्षण संस्थानों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। एक प्रश्न और सामने आया है कि जब संस्थान में कोई प्रशिक्षणार्थी ही नहीं होंगे तो उसका संचालन क्यों और कैसे किया जा सकता है?
फिलहाल उत्तर प्रदेश परीक्षा नियामक प्राधिकारी (पीएनपी) ने रिक्त सीटों को सीधे भरने का आदेश देकर प्रशिक्षण संस्थानों की अहमियत बचाने की कोशिश की है, लेकिन यह प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 13 नवंबर को स्पष्ट हो सकेगा कि रिक्त रह गईं 1.86 लाख सीटों को भरने में कितनी सफलता मिली।
पहले तो कुल सीट 2.42 लाख के सापेक्ष आवेदन के लिए तीन बार तिथि बढ़ाई गई। 2.40 लाख के करीब आए आवेदनों से पीएनपी और प्रशिक्षण संस्थानों को कुछ राहत दी, लेकिन जब काउंसलिंग शुरू हुई तो प्रदेश के सभी 65 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों और 31 हजार से ज्यादा निजी संस्थानों को मिलाकर मुश्किल से 56 हजार सीटें ही भरी जा सकीं। यह स्थिति तब है, जब वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण प्रवेश नहीं लिए गए थे।
जानकार बताते हैं कि परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों की भर्ती में बीएड प्रशिक्षितों के सम्मिलित करने से डीएलएड के प्रति अभ्यर्थियों का मोह घटने लगा। डीएलएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी सिर्फ प्राथमिक विद्यालय की भर्ती में सम्मिलित हो सकते हैं, जबकि बीएड प्रशिक्षित अभ्यर्थी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों की भर्ती में शामिल होते हैं। इस स्थिति में डीएलएड का भला नहीं होने वाला है।
ऐसे में प्रबंधतंत्र का प्रशिक्षण संस्थान के संचालन से मोह भंग होने के सिवाय विकल्प नहीं है। जानकार बताते हैं कि डीएलएड में इंटरमीडिएट की योग्यता पर प्रवेश देने की व्यवस्था देकर इसकी साख बचाई जा सकती है।
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