DISTRICT WISE NEWS

अंबेडकरनगर अमरोहा अमेठी अलीगढ़ आगरा इटावा इलाहाबाद उन्नाव एटा औरैया कन्नौज कानपुर कानपुर देहात कानपुर नगर कासगंज कुशीनगर कौशांबी कौशाम्बी गाजियाबाद गाजीपुर गोंडा गोण्डा गोरखपुर गौतमबुद्ध नगर गौतमबुद्धनगर चंदौली चन्दौली चित्रकूट जालौन जौनपुर ज्योतिबा फुले नगर झाँसी झांसी देवरिया पीलीभीत फतेहपुर फर्रुखाबाद फिरोजाबाद फैजाबाद बदायूं बरेली बलरामपुर बलिया बस्ती बहराइच बागपत बाँदा बांदा बाराबंकी बिजनौर बुलंदशहर बुलन्दशहर भदोही मऊ मथुरा महराजगंज महोबा मिर्जापुर मीरजापुर मुजफ्फरनगर मुरादाबाद मेरठ मैनपुरी रामपुर रायबरेली लखनऊ लख़नऊ लखीमपुर खीरी ललितपुर वाराणसी शामली शाहजहाँपुर श्रावस्ती संतकबीरनगर संभल सहारनपुर सिद्धार्थनगर सीतापुर सुलतानपुर सुल्तानपुर सोनभद्र हमीरपुर हरदोई हाथरस हापुड़

Wednesday, January 26, 2022

शिक्षा जगत के मुद्दे चुनावी चर्चा से बाहर, बहु प्रचारित नई शिक्षा नीति पर भी नहीं हो पा रही चर्चा

शिक्षा जगत के मुद्दे चुनावी चर्चा से बाहर, बहु प्रचारित नई शिक्षा नीति पर भी नहीं हो पा रही चर्चा


कोराना संक्रमण के दौर में होने जा रहे प्रदेश विधानसभा के चुनाव शिक्षा जगत के मुद्दे अभी तक चर्चा में जगह नहीं बना पाए हैं। चुनावी रैलियों व जनसभाओं पर रोक के कारण वर्चुअल माध्यम पर निर्भरता भी शिक्षा के मुद्दे पर ध्यानाकर्षण नहीं कर पा रही। यहां तक कि बहु प्रचारित नई शिक्षा नीति पर भी कोई मुद्दा नहीं बन पा रही है।


राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनावी बिगुल बजने से पहले प्रदेश में आम आदमी पार्टी की दस्तक के साथ एक बार प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा मुद्दा बनती नजर आई थी, लेकिन चुनावी सरगर्मी बढ़ने के बाद उस पर चर्चा भी नहीं हो पा रही है। 


दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली और यूपी के सरकारी स्कूलों की तुलनात्मक स्थिति पर बहस छेड़कर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। कुछ दिनों तक भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच वार-पलटवार का दौर भी चला, लेकिन अब मुद्दा चुनावी परिदृश्य से ओझल है। 


इसी तरह सत्तारूढ़ भाजपा ने नई शिक्षा नीति को ‘गेम चेंजर’ के तौर पर प्रचारित किया और यूपी को उसे लागू करने वाले पहला राज्य बताकर खुद को सबसे आगे दिखाने की कोशिश की, लेकिन अब चुनाव के समय इसकी भी कोई चर्चा नहीं हो रही है।


पूर्व कुलपति एवं राजनीति विज्ञानी प्रो. रजनीकांत पांडेय कहते हैं कि शिक्षा समाज को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। राजनीतिक दलों को शिक्षा क्षेत्र में सुधारों की कार्ययोजना के साथ चुनाव में उतरना चाहिए। इन विषयों के चुनावी मुद्दा बनने से समाज का भला होगा।


लखनऊ विश्वविद्यालय संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार पांडेय कहते हैं कि शिक्षा जगत के मुद्दों की यह अनदेखी दु:खद है। जब नई शिक्षा नीति लागू की गई थी तब भी इसमें राजनीतिक दलों ने कोई रुचि नहीं दिखाई थी। यह विषय शिक्षकों के बीच ही बहस का मुद्दा बनकर रह गया था

No comments:
Write comments