चुनावों में घटी सामाजिक और कर्मचारी संगठनों की अहमियत, पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष ऐसे संगठनों की करते थे मनुहार
बदला रुख
अब राजनीतिक दलों के अपने प्रकोष्ठ भी मोर्चा संभाल रहे
लखनऊ : चुनाव दर चुनाव सामाजिक एवं जातीय संगठनों की अहमियत कम होती जा रही है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी राजनीतिक दलों में सामाजिक व जातीय संगठनों को साधने के लिए कोई बड़ी कोशिश होती नहीं दिख रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहले कर्मचारियों, व्यापारियों, शिक्षकों, किसानों, अधिवक्ताओं और कतिपय जातियों के बड़े संगठनों की चुनाव में अहमियत बढ़ जाती थी। सत्तारूढ़ दल भी चुनाव से पहले इन्हें खुश करने का प्रयास करता था। सरकार शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठनों की कुछ माग पूरी करके उन्हें साथ खड़ा करने की कोशिश करती थी तो विपक्ष भी उन्हें पक्ष में लाने की पूरी कोशिश करता था। किसानों व व्यापारियों के संगठन भी कुछ बड़ी घोषणाएं करा लेते थे। अब राजनीतिक दलों के अपने प्रकोष्ठ ही मोर्चा संभाल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (चंदेल गुट) के प्रदेश मंत्री डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं कि जाति व धर्म के प्रभावी होने से शिक्षकों व कर्मचारियों के संगठन कमजोर हुए हैं। राजनीतिक दल इसका फायदा उठा रहे हैं।
No comments:
Write comments