कर्मचारी संगठन फिर हुए मुखर - पुरानी पेंशन को बताया सबसे बेहतर, NPS के नाम पर गुमराह न करें शासन के अधिकारी
फिर गर्म हो उठा पुरानी और नई पेंशन का मुद्दा, सरकार की सफाई के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा, पुरानी पेंशन की खूबियां गिना रहे शिक्षक-कर्मचारी
बड़ी चालाकी से अफसरों ने नई पेंशन को बताया बेहतर, शासन के दावे पर कर्मचारी उठा रहे सवाल
लखनऊ। सेवानिवृत्त कर्मचारी एवं पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरनाथ यादव ने मुख्य सचिव के ने स्तर से नई पेंशन को पुरानी पेंशन से बेहतर बताए जाने पर सवाल उठाया है। उन्होंने नई पेंशन की खामियां गिनाते हुए पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग की है। यादव ने कहा है कि शासन के अधिकारियों ने नई पेंशन प्रणाली को बेहतर बताकर जिस चालाकी का परिचय दिया है, कर्मचारी उनके झांसे में आने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा कि एनपीएस पेंशन न होकर स्वनिवेशित धन वापसी योजना है। एनपीएस में मिलने वाली वार्षिकी का न मूल वेतन से कोई संबंध है और न ही मूल्य सूचकांक से। इससे नए सिस्टम में कोई महंगाई राहत नहीं मिलेगी। मृत्युपर्यंत सिर्फ फिक्स राशि मिलेगी। वेतन आयोग की रिपोर्ट आने पर हर वेतनमान में न्यूनतम पेंशन और पेंशन निर्धारण की व्यवस्था रहती है, जो नई पेंशन प्रणाली में नहीं है। पेंशनर/पारिवारिक पेंशनर की आयु 80 वर्ष होने पर पेंशन 20 प्रतिशत बढ़ाई जाती है जो 100 वर्ष होने पर दोगुनी हो जाती है।
उन्होंने बताया कि जीपीएफ नियमावली 1985, नई व्यवस्था में नहीं है। टियर-2 खाता खोलने की व्यवस्था है, किंतु अव्यावहारिक है। प्रदेश में एक भी टियर-2 खाता खोले जाने की जानकारी नहीं है। अधिकतर फंड मैनेजर के मुख्यालय मुंबई में हैं। कोई केस फं स गया तो क्लीयर कराने में पसीने छूट जाएंगे।
महामंत्री ओपी त्रिपाठी का कहना है कि पेंशनर इन्हीं वजहों से पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने पीएम मोदी से आग्रह किया है कि वे पुरानी पेंशन को बहाल करने का एलान कर चुनाव के दौरान कर्मचारियों के बीच इसका श्रेय लें। संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बीएल कुशवाहा ने कहा एनपीएस टोटल रिस्क है।
विधानसभा चुनाव के बीच पुरानी बनाम नई पेंशन का मुद्दा फिर गरमा गया है। विभिन्न कर्मचारी संगठनों की पेंशन से संबंधित शिकायतों के मद्देनजर मुख्य सचिव ने कार्मिक एवं वित्त विभाग के अफसरों के साथ शुक्रवार को समीक्षा बैठक के सफाई दी है। इसे लेकर व्हाट्सएप ग्रुपों और फेसबुक आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शिक्षक और कर्मचारी मुखर हो गए हैं। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के पक्ष में किसी भी तरह के तर्क सुनने को कर्मचारी तैयार नहीं है।
सेवानिवृत्त शिक्षक एवं पूर्व जिला पूर्व समन्वयक एपी मिश्र ने एक ग्रुप पर लिखा कि पुरानी पेंशन के अंतर्गत यदि पेंशन 17, 250 है तो कर्मचारी को मूल पेंशन 28,750 पर समय-समय पर अनुमन्य महंगाई राहत जोड़कर मिलेगी। यानि वर्ममान में अनुमन्य 31 प्रतिशत महंगाई भत्ता 8912 जोड़कर कुल 26163 रुपये बनते हैं लेकिन एनपीएस में 19,569 पेंशन ही मिलेगी। ओपीएस लगातार बढ़ता है जबकि एनपीएस पर महंगाई राहत नहीं मिलेगी। इसलिए एनपीएस नुकसानदेह है।
एक शिक्षक अनुराग पांडेय ने लिखा कि ह्यपुरानी और नई पेंशन की तुलना वे कर रहे हैं जो स्वयं पुरानी पेंशन का लाभ ले रहे हैं। नई पेंशन यदि इतनी अच्छी है तो 2005 के पहले वाले अधिकारी-कर्मचारी पुरानी पेंशन क्यों ले रहे हैं।
एक अन्य शिक्षक अनूप पांडेय ने पोस्ट किया कि रिवर्स कर देना चाहिए। न्यू पेंशन स्कीम नेताओं को और पुरानी पेंशन स्कीम कर्मचारियों को मिलनी चाहिए। आखिर जब न्यू पेंशन स्कीम इतनी ही अच्छी है तो इसके बेमिसाल फायदों से हमारे नेता ही क्यों वंचित रहें? पंकज सिंह ने लिखा कि जब एनपीएस में अधिक मिल रहा है परन्तु कर्मचारी उसे लेना नहीं चाह रहे हैं। वो जीपीएफ कम प्राप्त कर खुश हैं तो सरकार क्यों नहीं कर्मचारियों को कम देकर खुश रखे
लखनऊ : यूपी में पुरानी पेंशन योजना और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) को लेकर शासन व कर्मचारियों के बीच रस्साकशी तेज हो गई है। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र द्वारा एनपीएस को ही बेहतर बताए जाने के बाद कर्मचारी संगठन लामबंद हो गए हैं। वह पुरानी पेंशन योजना को ही बेहतर बता रहे हैं।
आल टीचर्स एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु का कहना है कि एनपीएस में यह भी विकल्प है कि अगर कोई चाहे तो पुरानी पेंशन योजना छोड़कर इसे चुन सकता है। प्रदेश में अब तक अप्रैल वर्ष 2005 के पहले नियुक्त हुए एक भी अधिकारी व कर्मचारी ने इसे नहीं चुना।
अगर यह इतनी अच्छी है तो सेवानिवृत्त होने के करीब जो भी आइएएस अधिकारी हैं वह पुरानी पेंशन योजना छोड़कर एनपीएस चुन लें। उन्होंने कहा कि इसमें सब कुछ शेयर मार्केट पर निर्भर करता है और यह जोखिम भरा काम है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरि किशोर तिवारी कहते हैं कि शेयर मार्केट में जिन कंपनियों में पैसा लगाया गया है, उसमें से एक कंपनी सात बार डिफाल्टर घोषित की जा चुकी है। फिर एनपीएस में 10 प्रतिशत धन सरकारी कर्मचारी अपने वेतन से देता है और 14 प्रतिशत धन सरकार देती है। सरकार अपना हिस्सा समय पर नहीं जमा करती।
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