लड़खड़ाई शिक्षा के हौसले बुलंद, बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने देने की मुहिम रहेगी जारी
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शुरू हुई बदलाव की मुहिम रहेगी जारी
नई दिल्ली: कोरोना संकट के चलते देश की शिक्षा व्यवस्था जिस तरह से लड़खड़ाई हुई है, वह किसी से छुपी नहीं है लेकिन इसके बाद भी उसके हौसले डिगे नहीं हैं। डिजिटल और आनलाइन माध्यमों से पढ़ाने का एक नया रास्ता तैयार किया गया है। सरकार भी यह मान रही है कि अभी यह सभी की पहुंच से दूर है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में जिस तरह से संकेत दिए गए है, उनमें अंतिम छोर पर बैठे बच्चे को भी आनलाइन व डिजिटल माध्यम से पढ़ाने की तैयारी है। मंगलवार को पेश होने वाले बजट में भी इसकी झलक दिख सकती है।
वैसे भी आनलाइन और डिजिटल शिक्षा अब शिक्षा की एक अनिवार्य जरूरत बन गई है। ऐसे में आने वाले वर्षों में सरकार का मुख्य फोकस इसे और मजबूती देने की है। यही वजह है कि सरकार देश के सभी स्कूल, कालेज और शैक्षणिक संस्थानों को आनलाइन शिक्षा से जोड़ने में जुटी है। सभी स्कूलों में स्मार्ट क्लास रूम से लैस करने की दिशा में काम चल रहा है। सरकार इस दिशा में कुछ और बड़े कदम उठा सकती है। चुनौती स्कूली व उच्च शिक्षा के ग्रास एनरोलमेंट और ड्राप आउट रेशियो को कोरोना से पूर्व वाली स्थिति यानी वर्ष 2019-20 के स्तर पर ही बरकरार रखने की है।
नई शिक्षा नीति पर भी तेजी से हो रहा काम
सरकार के सामने मौजूदा संकट के दौर में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों पर तेजी से अमल की भी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, इसे लेकर सरकार तेजी से काम कर रही है। लेकिन जिन बदलावों को वह लागू करना चाहती है, वे स्कूल-कालेज के खुलने पर ही ठीक से अमल में लाए जा सकेंगे। हालांकि, इस दौरान सरकार जरूरी तैयारियों में जुटी हुई है।
पढ़ाई-लिखाई के तरीकों में बदलाव
असर ( एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट) के हवाले से सरकार ने शिक्षा में आए बदलावों को रेखांकित किया है। बताया कि 2018 में जहां 36 प्रतिशत छात्रों के पास पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन या दूसरे डिजिटल उपकरण मौजूद थे, जबकि वर्ष 2021 में यह संख्या 67.6 रही। इसी तरह 15-16 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में भी सुधार दिखा है, क्योंकि वर्ष 2018 में नामांकन न करने वाले बच्चे 12 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2021 में घटकर 6.6 प्रतिशत रह गए।
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