DBT की जिम्मेदारियां शिक्षकों के लिए बनी सिरदर्द, अभिभावकों और बैंकों की लापरवाही की सजा पा रहे बेसिक शिक्षक
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डीबीटी को लेकर दी गईं जिम्मेदारियां शिक्षकों के लिए सिरदर्द बन गई है। पहले बच्चों की डेटा इंट्री के बाद शिक्षकों को उनके अभिभावकों के एकाउंट की आधार सीडिंग का काम भी दिया गया। हाल यह कि शिक्षक घुन जैसे पिस रहे हैं। उनका आरोप है कि खातों की आधार सीडिंग में बैंक ढिलाई बरत रहे हैं और नोटिस और कार्यवाही शिक्षकों के हिस्से आ रही है।
परिषदीय स्कूलों में बच्चों को ड्रेस, जूता-मोजा, स्कूल बैग आदि के लिए शासन की तरफ से सीधे 1100 रुपये भेजने की व्यवस्था की गई थी। डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए सभी बच्चों के अभिभावकों के बैंक खातों की डिटेल अपलोड कर इनकी आधार सीडिंग भी कराई जानी थी।
DBT : खाते में सीधे धनराशि भेजने की शासन की योजना लेटलतीफी का शिकार, अभिभावक भी गम्भीर नहीं
जिस तरह से शासन द्वारा डीबीटी के माध्यम से अभिभावकों के खातों में बच्चों की सामग्री खरीदने के लिए पैसा दे रही है, उसमें अभिभावक भी गम्भीर नहीं है। स्कूल के शिक्षकों की मानें तो तमाम अभिभावक बच्चों के पैसों को दूसरे कामों में प्रयोग कर डाला। पूछने पर आज कल में खरीद कर देने की बात करते हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को यूनीफार्म, स्वेटर, जूता, मोजा, बैग के लिए अभिभावकों के खाते में सीधे धनराशि भेजने की शासन की योजना लेटलतीफी का शिकार हो गई है।
बैंक एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों की शिथिल कार्य प्रणाली के चलते यह योजना परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है। करीब 50 दिनों बाद स्कूल खुलने पर तमाम छात्रों के पास यूनीफार्म तक नहीं है।
डीबीटी के माध्यम से बेसिक स्कूलो में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के खातों को बैंक में आधार सीटेड होना था। लेकिन अभी भी अलग-अलग बैंकों में बहुत से अभिभावकों के खाते आधार सीटेड नहीं हो सके। इससे मुफ्त ड्रेस, स्वेटर, जूता, मोजा आदि के लिए पैसा खातों में नहीं पहुंच पा रहा है। कोरोना संक्रमण के कारण करीब डेढ़ माह से बंद रहे स्कूलों को 14 फरवरी से खोल दिया गया। स्कूलों में पहुंच रहे तमाम बच्चों के पास न तो यूनीफार्म और न ही जूता-मोजा। ऐसे बच्चे हीन भावना महसूस करने को मजबूर हैं।
DBT : अभिभावकों की लापरवाही और बैंको की मनमानी की सजा भुगत रहे बेसिक शिक्षक
बैंकों की मनमानी के चलते सूबे परिषदीय स्कूलों के बच्चे ड्रेस से वंचित, विभाग के दबाव से शिक्षक परेशान
परिषदीय स्कूलों के कई बच्चों को डीबीटी की राशि का अभी भी इंतजार है। बैकों द्वारा अभिभावकों के खातों को आधार से लिंक नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण शासन से बार-बार डाटा रिजेक्ट में आ रहा है। बीएसए एवं ब्लॉक के बीईओ द्वारा बार-बार बैंकों को पत्र लिखा जा रहा है। मगर अभी तक उक्त खातों को आधार से लिंक नहीं किया गया है। शिक्षक भी बैंकों के चक्कर लगा रहे हैं। कई जिलों में अभिभावकों और बैंक कर्मियों की लापरवाही से शिक्षकों पर कार्यवाहियां भी शुरू कर दी गई हैं।
बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में शासन द्वारा बच्चों को ड्रेस, स्वेटर, बैग और जूते-मौजों की राशि खरीदने के लिए 1100-1100 रुपये दिए जा रहे हैं।
विभाग के अनुसार बैंकों में पहुंचकर प्रार्थना पत्र के साथ आधार कार्ड दे रहे हैं, मगर संबंधित बैंक कर्मचारियों को खातों को आधार से लिंक करने में देरी की जा रही है। बीएसए द्वारा भी लीड बैंक मैनेजर और बीईओ द्वारा संबंधित बैंकों को कई बार पत्र जारी किया जा चुका है, मगर विभाग के सामने समस्या यह समस्या लगातार आ रही है। बैंकों की मनमानी के कारण बच्चों का पैसा अभी तक शासन में फंस हुआ है।
बताया गया कि अभी तक इन बच्चों के अभिभावक ड्रेस, जूते-मौजे, स्वेटर और बैग नहीं खरीद सके हैं। अभिभावक भी राशि के लिए बैंकों के चक्कर काट रहे हैं।
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