छप तो गईं, बच्चों तक नहीं पहुंचीं किताबें, बस्तों की जगह ब्लॉक में पड़ीं दो करोड़ किताबें
लखनऊ । प्राइमरी व जूनियर स्कूलों के छात्रों के लिए 11.42 करोड़ किताबें छापी गईं। इनमें से 9 करोड़ तो ब्लाक तक पहुंचीं लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और ढुलाई के फेर में फंसी 2 करोड़ किताबें अब भी ब्लाक स्तर के दफ्तरों में पड़ी हैं। नतीजतन, छात्रों को जैसे-तैसे इंतजाम कर पढ़ाई करनी पड़ रही है।
परिषदीय व सहायताप्राप्त स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक निशुल्क दी जाने वाली पाठ्यपुस्तकों की सप्लाई अभी पूरी नहीं हो पाई है। इन्हें 90 दिन की समयावधि में सप्लाई करना होता है। एक हफ्ते तक किताबें नहीं पहुंचीं तो मुद्रकों की धनराशि में कटौती के साथ ब्लैकलिस्ट करने की कार्रवाई होगी। ब्लॉक कार्यालयों से स्कूल तक किताबों की ढुलाई के बजट का 7.84 करोड़ खर्च न करने की नीयत से अधिकारी ढिलाई बरत रहे हैं।
टेण्डर भी देर से हुआ
शैक्षिक सत्र अप्रैल से शुरू हुआ जबकि टेण्डर जून में जारी किया गया। 11.42 करोड़ किताबों को छापने के लिए सात जून के टेण्डर के मुताबिक जून के आखिरी हफ्ते से सप्लाई शुरू होनी थी लेकिन कागज की कमी बताकर मुद्रकों ने हाथ खड़े कर दिए। महानिदेशक ने इसमें कार्रवाई करते हुए चार टीमों को बना कर मामले को सुलझाने को निर्देश दिए।
होता है ठेके का खेल !
शिक्षक बताते हैं कि खण्ड शिक्षा अधिकारी इसका बाकायदा ठेका भी निकालते हैं। आगरा, कुशीनगर, संतकबीर नगर व गोरखपुर में शिक्षक नाम न छापने की शर्त के साथ बताते हैं कि ठेके की कार्रवाई कागजी होती है। शिक्षक ही रोज बीआरसी पर जाकर किताबें लाता है।
बीआरसी पर शिक्षकों को बुलाकर किताबें दी जाती हैं। मैं स्वयं लखनऊ के माल ब्लॉक में हूं लेकिन आज तक किताबें स्कूल में नहीं पहुंचाई गईं। -संतोष तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष, एसोसिएशन
समय पर किताबें न पहुंचाने पर 12 मुद्रकों को नोटिस जारी कर चुके हैं। बीआरसी से किताबें स्कूलों में पहुंच रही हैं। एक हफ्ते में किताबें स्कूलों में बंट जाएंगी। -श्याम तिवारी, पाठ्य पुस्तक अधिकारी
No comments:
Write comments