खेल शुल्क में 'खेल' नहीं कर पाएंगे सरकारी व निजी शिक्षण संस्थान
व्यवस्था पारदर्शी बनाने के साथ खेल अनिवार्य करने के निर्देश
खेल के आयोजनों पर ही खर्च करनी होगी खेल शुल्क की धन
लखनऊ। छात्रों से खेल के नाम पर वसूले जाने वाले शुल्क का शिक्षण संस्थान द्वारा डकारने का 'खेल' अब नहीं चलेगा। प्रदेश के सभी सरकारी व निजी शिक्षण संस्थानों को यह शुल्क अब खेल के आयोजनों पर ही खर्च करने होंगे।
दरअसल, प्रदेश के लगभग सभी संस्थान अपने विद्यार्थियों से इस मद में हर साल शुल्क वसूलते हैं। पर प्रबंधन न तो प्रतियोगिताओं का आयोजन कराता है और न ही छात्रों को किसी खेल का नियमित अभ्यास कराया जाता है। यही नहीं कुछ संस्थान तो इस राशि का उपयोग अपने निजी उपयोग में कर देते हैं।
इस संबंध में मिली शिकायतों को देखते हुए अपर मुख्य सचिव खेल नवनीत सहगल ने प्रमुख सचिव माध्यमिक व बेसिक शिक्षा दीपक कुमार समेत अन्य को पत्र लिखकर इस शुल्क का इस्तेमाल हर हाल में खेल पर ही खर्च करने की व्यवस्था के निर्देश दिए हैं।
यह भी कहा कि इस राशि को वास्तव में खेल संबंधी गतिविधियों पर ही खर्च करने के बारे में जानकारी की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। इसके चलते ही संस्थान इसका दुरुपयोग करते हैं। इसे देखते हुए एक ऐसी व्यवस्था बने, जिससे कि राशि का दुरुपयोग न हो पाए। इसके साथ ही उन्होंने सभी शिक्षण संस्थानों में खेल को अनिवार्य करने के भी निर्देश दिए।
No comments:
Write comments