लाभ वाले शिक्षण संस्थान आयकर में छूट नहीं मांग सकते: सुप्रीम कोर्ट, केवल शिक्षा में लगे रहने पर ही संस्थानों को मिल सकता है लाभ
शिक्षा देना मकसद होगा तभी आयकर छूट - सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि चैरिटेबल संस्थानों - एनजीओ, सोसायटी या ट्रस्ट तभी आयकर में छूट का लाभ ले सकते हैं, जब उनका एकमात्र कार्य शिक्षा देना ही हो। साथ ही वे कोई और गतिविधि नहीं कर रहे हों। यह भी देखना होगा कि इन संस्थानों का उद्देश्य लाभ कमाना भी न हो । आयकर की धारा 10 (23 सी) की व्याख्या करने से जहां चैरिटेबल संस्थानों की गतिविधियों को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता पैदा हो गई है, वहीं इससे सरकार को टैक्स का भारी कलेक्शन होने की संभावना है, क्योंकि ऐसे संस्थान जो शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियों में लगे हैं उन्हें आयकर से छूट नहीं ले सकेंगे। कोर्ट ने कहा है कि यह फैसला आगामी तारीख से प्रभावी होगा, जो संस्थान छूट का लाभ पहले ले चुके हैं, लेकिन अगले वित्त वर्ष से उनका मूल्यांकन होगा।
लाभ लेने पर छूट नहीं
तीन जजों की पीठ ने फैसले में कहा कि सभी ट्रस्ट, सोसायटी आदि को शिक्षण कार्य में ही लगा होना चाहिए, लेकिन यदि ये संस्थान लाभ अर्जित करने के लिए काम करते दिख रहे हैं तो ऐसे संस्थानों को टैक्स छूट की मंजूरी नहीं मिलेगी।
बाइलॉज बदलना पड़ेगा
कोर्ट के इस फैसले से सैकड़ों संस्थानों को अपने दस्तावेजों जैसे मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन और बाइलॉज को बदलना पड़ेगा, क्योंकि कोर्ट ने कहा है कि है उन्हें यह दिखाना होगा कि वे शिक्षण संस्थानों का कार्य ही करते हैं। और अन्य गतिविधियां नहीं करते।
नई दिल्ली। यह मानते हुए कि हमारे संविधान ने शिक्षा को चैरिटी (दान) के समान माना है, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि संस्थान या ट्रस्ट कर छूट के लाभों का दावा तभी कर सकते हैं। जब वे केवल शिक्षा में लगे हों, न कि लाभ की किसी अन्य गतिविधि में आईटी अधिनियम की धारा-10 आय के कुछ वर्गों पर कराधान से छूट देती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि ऐसे संस्थानों का उद्देश्य लाभोन्मुख प्रतीत होता है तो उन्हें आयकर अधिनियम की धारा 10 (23सी) के तहत मंजूरी नहीं मिल सकती है।
मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मुख्य आयकर आयुक्त के आदेशों के खिलाफ न्यू नोबल एजुकेशनल सोसाइटी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर यह फैसला सुनाया है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि घोषित कानून भविष्यलक्षी (भावी) प्रभाव से काम करेगा।
अदालत ने कहा है, एक ज्ञान आधारित सूचना संचालित समाज में सच्ची संपत्ति शिक्षा है और उस तक पहुंच है। प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था धर्मार्थ प्रयास को समायोजित करती है और यहां तक कि पोषित भी करती है क्योंकि यह वापस देने की इच्छा से प्रेरित है, जो किसी ने समाज से लिया है या लाभान्वित किया है। हमारा संविधान एक ऐसे मूल्य को दर्शाता है जो शिक्षा को चैरिटी के बराबर मानता है। इसे न तो व्यवसाय, न ही व्यापार और न ही वाणिज्य के रूप में माना जाना चाहिए।
No comments:
Write comments