स्कूलों को शासन के निर्देश का इंतजार, फीस को लेकर उच्च न्यायालय का निर्णय अभिभावकों को खुशी देने वाला
प्रयागराज : उच्च न्यायालय ने स्कूलों को सत्र 2020-21 की फीस से 15 प्रतिशत वापस करने या अगले सत्र में समायोजित करने का फैसला सुनाया है। यह आदेश अभिभावकों के लिए जहां खुशी देने वाला है, वहीं स्कूल प्रबंधन को असमंजस में डाल दिया है। उनका कहना है कि दो सत्र में शुल्क में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई। उसके बाद भी फीस वापसी का आदेश दे दिया गया, फिलहाल सरकार के निर्देश का इंतजार किया जा रहा है। उधर अभिभावक संघ ने न्यायालय के निर्णय का स्वागत कर सराहा है।
अभिभावक एकता समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजय गुप्ता ने कोरोना काल में स्कूलों की फीस प्रकरण पर हुए फैसले को लेकर अभिभावकों की ओर से आभार जताया है।
हाईकोर्ट के आदेश से अभिभावकों को बड़ी राहत, फीस न चुका पाए तो स्कूलों से कटा था बच्चों का नाम
कोरोना काल में नौकरीपेशा से लेकर व्यापारी तक रहे परेशान, बच्चों की छूट गई थी पढ़ाई
प्रयागराज । कोरोना काल का मंजर शायद ही कोई याद रखना चाहेगा। नौकरीपेशा लोगों की नौकरी चली गई तो छोटे और मध्यम व्यापारियों का व्यापार चौपट हो गया। ऐसे कठिन समय में फोस जमा न करने के कारण कुछ निजी स्कूलों ने बच्चों की फीस माफ कर दी लेकिन अधिकतर स्कूल ऐसे थे जिन्होंने दबाव बनाया तो अभिभावकों अपने बच्चों का नाम कटवा लिया। लाचार अभिभावकों के पास बच्चों का नाम सरकारी स्कूलों में लिखवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में आठवीं तक की पढ़ाई मुफ्त होने के कारण इन स्कूलों में बच्चों की संख्या काफी बढ़ गई थी। यूपी बोर्ड से जुड़े सरकारी और सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों कक्षा 9 से 12 तक सालाना फीस मुश्किल से हजार से डेढ़ हजार तक पड़ती है, जबकि सीबीएसई और सीआईएससीई से संचालित जिले के प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूलों में एक महीने की फोस ढाई से चार हजार रुपये तक है। सोमवार को आए हाईकोर्ट के आदेश से अभिभावकों ने राहत की सांस ली है।
बड़ा फैसला : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश भर के निजी विद्यालयों को दिया आदेश, स्कूल कोरोना काल में वसूली फीस का 15 फीसदी लौटाएं
कोर्ट ने कहा, बिना सेवा दिए फीस की मांग करना मुनाफाखोरी
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि प्रदेश के सभी प्राइवेट स्कूलों को कोरोना काल के दौरान सत्र 2020-21 में वसूली गई फीस में से 15 प्रतिशत फीस अभिभावकों को लौटानी होगी। कोर्ट ने कहा कि जो छात्र विद्यालय में पढ़ रहे हैं उनकी फीस अगले सत्र की फीस में समायोजित की जाए और जो छात्र स्कूल छोड़ चुके हैं,उनसे ली गई फीस में से 15 प्रतिशत फीस वापस कर दी जाए।
कोरोना काल में स्कूलों द्वारा वसूली जा रही फीस माफ किए जाने को लेकर कई याचिकाएं और जनहित याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन सभी पर एक साथ सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल एवं न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ में यह आदेश दिया है। इस पूरी प्रक्रिया को करने के लिए हाईकोर्ट ने सभी स्कूलों को दो माह का समय दिया है। यह निर्णय राज्य के सभी बोर्डों के स्कूलों और विद्यार्थियों पर लागू होगा।
अभिभावकों की ओर से अधिवक्ता शाश्वत आनंद और यनेंद्र पांडेय ने कहा कि निजी स्कूलों में वर्ष 2020-21 में ऑनलाइन ट्यूशन को छोड़कर कोई भी सेवा नहीं दी गई। इस प्रकार निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस से एक भी रुपया ज्यादा लेना मुनाफाखोरी के अलावा कुछ भी नहीं है।
प्राइवेट स्कूलों ने दो साल नहीं बढ़ाई थी फीस
प्रयागराज : कोरोना काल में प्रदेश सरकार के आदेश पर निजी स्कूलों ने 2020-21 और 2021-22 सत्र में फीस में वृद्धि नहीं की थी। प्रबंधकों का कहना है कि यूपी के नियमों के अनुसार स्कूल हर साल 10 तक फीस बढ़ा सकते हैं। लेकिन दो साल तक एक रुपया फीस नहीं बढ़ाई गई। तमाम अभिभावक जो फीस जमा नहीं कर सके उनके लिए फीस माफ की गई।
कोरोना काल में सरकारी स्कूलों में बढ़ा था दाखिला
कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों की मोटी फीस न चुका सकने के कारण तमाम अभिभावकों ने अपने बच्चों का नाम कटवाकर सरकारी स्कूलों में लिखवा दिया था। प्रयागराज समेत अधिकतर जिलों के सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या उस दौर में बढ़ गई थी।
याची बोले, अभिभावकों की हुई जीत
मुरादाबाद : कोरोना काल में स्कूलों द्वारा ली गई फीस की वापसी के लिए उच्च न्यायालय में याचिका करने वाले मुरादाबाद पेरेंट्स ऑफ आल स्कूल के अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने उच्च न्यायालय का शुक्रिया अदा किया। सचिव अंकित अग्रवाल ने कहा कि यह जीत अभिभावकों की एकता की जीत है।
याचियों के अधिवक्ताओं की राय
जो फीस होती है, वह कानून में (off के सिद्धांत पर आधारित होती है, जिसका अर्थ होता है समथिंग फॉर समथिंग । कोरोना काल के दौरान प्राइवेट स्कूलों द्वारा फीस के अनुपात में लाइब्रेरी, लैब, स्पोट्र्स आदि सेवाए नहीं दी जा सकी थी। इसलिए फीस प्री-काविड शुल्क पर नहीं ले सकते थे। कोर्ट का यह आदेश प्रदेश के सभी प्राइवेट स्कूलों पर प्रभावी होगा। अगर दो महीने में सभी स्कूल आदेश का अनुपालन नहीं करते हैं तो प्रभावित अभिभावकों के पास हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल करने का विकल्प खुला रहेगा। _शाश्वत आनंद, एडवोकेट हाईकोर्ट याचियों के अधिवक्ता
माफ की गई यह फीस अभिभावको को छूट के रूप में मिलेगी। कोर्ट के इस आदेश ने प्रदेश के करोड़ों अभिभावकों को बड़ी राहत दी है। क्योंकि प्राइवेट स्कूल कोविड के दौरान मनमानी फीस वसूल कर उत्तर प्रदेश सरकार के आदेशों का पालन भी नहीं कर रहे थे। हमारा तर्क था कि निजी स्कूलों में वर्ष 2020-21 में ऑनलाइन ट्यूशन को छोड़कर कोई भी सेवा नहीं दी गई। उसके बाद भी फीस लिया जाना पूरी तरह गलत है। हमने अपने तर्कों के समर्थन में इंडियन स्कूल जोधपुर बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी स्कूलों द्वारा बिना कोई सेवा दिए फीस की मांग करना मुनाफाखोरी व शिक्षा का व्यवसायीकरण ही है। _ यनेंद्र पांडेय, एडवोकेट हाईकोर्ट याचियों के अधिवक्ता
कोर्ट आर्डर
No comments:
Write comments