मदरसा छात्रों की छात्रवृत्ति में करोड़ों के घोटाले का मामला, दोषी अधिकारियों से घोटाले की रकम क्यों नहीं वसूली : हाईकोर्ट
कोर्ट ने पूछा- अभियोजन स्वीकृति देने में क्यों लगे पांच साल
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मदरसा छात्रों की छात्रवृत्ति में करोड़ों रुपये के घोटाले में अभियोजन स्वीकृति में पांच साल की देरी होने पर नाराजगी जताई। मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण से पूछा है कि विभागीय जांच में दोषी मिले अधिकारियों से छात्रवृत्ति की धनराशि अभी तक क्यों नहीं वसूली गई। उन्होंने निदेशक को इस बाबत शपथपत्र दाखिल करने को कहा। अगली सुनवाई 25 जनवरी को होगी।
कोर्ट ने यह आदेश इस्लामिक मदरसा मॉर्डनाइजेशन टीचर्स एसोसिएशन की वर्ष 2014 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मामले में अभियोजन स्वीकृति वर्ष 2019 में दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि अगर 25 जनवरी तक निदेशक का शपथपत्र नहीं आता है, तो उन्हें कोर्ट में हाजिर होना होगा। शपथपत्र में यह भी बताने को कहा है कि वसूली न करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से ही क्यों न घोटाले की रकम वसूली जाए।
इससे पहले कोर्ट को प्रति शपथपत्र के जरिए बताया गया कि हाथरस के तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बीपी सिंह ने छात्रों के फर्जी नाम से 24 करोड़ 92 लाख 76 हजार 312 रुपये के छात्रवृत्ति की मांग की थी। इस संबंध में वर्ष 2011-12 व 2012-13 का कोई रिकॉर्ड कार्यालय में नहीं है। मामले में बीपी सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज है। हालांकि निदेशक के संस्तुति देने के बाद वर्ष 2019 में अभियोजन शुरू हो सका है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं इसमें शामिल हैं या उनके कार्यालय के स्टाफ ने संस्तुति संबंधी फाइल दबा रखी हो।
कोर्ट को यह भी बताया गया कि दोषी पाए गए अधिकारी से 27 लाख 25 हजार रुपये वसूली की नोटिस भेजी गई थी। इस पर हाईकोर्ट ने वसूली पर रोक लगा दी। कहा कि मामला करोड़ों रुपये का है तो सिर्फ 27 लाख 25 हजार की वसूली का विवरण हो क्यों दिया गया। साथ ही पूछा कि वसूली न हो पाने के लिए कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं।
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