सेवानिवृत्ति का विकल्प देने वाले शिक्षक को पहले ही वीआरएस लेने पर ग्रेच्युटी पाने का हक, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नौ फीसदी ब्याज समेत ग्रेच्युटी के भुगतान का दिया निर्देश
प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 60 साल में सेवानिवृत्ति विकल्प देने वाले 50 वर्ष की आयु में 27 साल, नौ माह 28 दिन की सेवा के बाद वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लेने वाले शिक्षक को नौ फीसदी ब्याज सहित ग्रेच्युटी का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने पर 29 अगस्त 1981 का शासनादेश लागू नहीं होगा। कोर्ट ने ग्रेच्युटी का भुगतान करने का हकदार न मानने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि ग्रेच्युटी का भुगतान पहले से मिल रही पेंशन के अतिरिक्त होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र ने डॉ. अशोक कुमार तोमर की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। मामले में याची की 1982 में लेक्चरर पद पर नियुक्ति की गई और अक्तूबर 2002 में प्रधानाचार्य पद पर नियुक्त हुआ। 2009 में याची ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी दी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। उसे सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान नहीं किया गया तो हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
कोर्ट ने संयुक्त शिक्षा निदेशक सहारनपुर को निर्णय लेने का निर्देश दिया। उन्होंने नौ दिसंबर 2010 को पेंशन का आदेश दिया किंतु ग्रेच्युटी का हकदार नहीं माना। कहा कि याची ने 60 साल में सेवानिवृत्ति का विकल्प भरा था। ग्रेच्युटी भुगतान एक्ट के अंतर्गत इस आदेश को लेकर नियंत्रक प्राधिकारी के समक्ष वाद दायर किया। छह सितंबर 2013 को नियंत्रक प्राधिकारी ने छह लाख 46 हजार 041 रुपये ग्रेच्युटी का भुगतान करने का निर्देश दिया। जिसके खिलाफ अपील मंजूर करते हुए आदेश रद्द कर दिया गया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि कानून की गलत व्याख्या की गई है और शासनादेश याची के मामले में लागू नहीं होगा। कोर्ट ने याची को ग्रेच्युटी पाने का हकदार माना और गणना कर मय ब्याज भुगतान का निर्देश दिया है।
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