स्कूलों की मिलीभगत से यूनीफार्म में जमकर चलता है कमीशन का खेल
चुनिंदा दुकानों पर ही मिलती है संबंधित स्कूल की ड्रेस, अभिभावकों की जेब पर बढ़ा बोझ
प्रयागराज। नए सत्र के साथ ही अभिभावकों की जेब पर बोझ पड़ने की शुरुआत हो जाती है। खासतौर पर अप्रैल अभिभावकों की जेब पर सबसे अधिक भारी होता है। इसी माह में कॉपी, किताब, वार्षिक शुल्क के साथ ही यूनीफार्म व अन्य खर्च का बोझ भी पड़ता है।
इसमें भी स्कूलों और दुकानदारों की मिलीभगत के कारण अभिभावकों को सबसे अधिक समस्या होती है। खास बात यह है कि हर स्कूल की यूनिफार्म शहर के अलग-अलग चुनिंदा दुकान पर ही मिलती है। ऐसे में मजबूरी में अभिभावकों को इन्हीं दुकानों से बच्चों की यूनिफार्म लेना पड़ता है।
स्कूलों में बच्चों के दाखिले के साथ ही यूनिफार्म पर खर्च भी बड़ा होता है। इसमें भी स्कूलों की तरफ से बताई गई दुकानों पर ही यूनिफार्म मिलती है जो कि अक्सर खराब गुणवत्ता की होती है। इससे गर्मी और जाड़े के मौसम में बच्चों को अधिक परेशानी उठानी पड़ती है। इसके साथ ही अभिभावकों को इस यूनिफार्म के लिए बाजार भाव से अधिक कीमत भी इन दुकानदारों को देनी पड़ती है।
हालत यह है कि स्कूलों के द्वारा चुनी गईं दुकानों में टेरीकॉट से बनी नर्सरी के बच्चों की शर्ट की कीमत 255 रुपये है। इससे बड़े बच्चों की शर्ट की कीमत 350 रुपये से अधिक है। दूसरी ओर बाजार में इसी गुणवत्ता की शर्ट इससे काफी कम दाम में उपलब्ध है।
इसी प्रकार पैंट की कीमत भी अच्छी क्वालिटी के कपड़ों से अधिक है। इनमें भी प्रत्येक स्कूल की यूनिफार्म की कीमत भी अलग- अलग होती है। हालांकि कपड़ों की गुणवत्ता एक जैसी ही होती है। इन चुने हुए दुकानों के अलावा यूनिफार्म किसी अन्य दुकान पर नहीं मिलते हैं। ऐसे में अभिभावकों के पास किसी भी प्रकार का कोई विकल्प नहीं होती है।
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