’चालाक' अभिभावकों से निपटना बेसिक शिक्षकों के लिए बनी चुनौती
■ सरकारी व प्राइवेट दोनों जगह नामांकन कराने की चल रहे चालें
■ सरकारी में डीबीटी की धनराशि लेकर प्राइवेट स्कूल पर करते खर्च
परिषदीय स्कूलों के शिक्षक इन दिनों नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह चुनौती उन 'चालाक' अभिभावकों से निपटने की है, जिन्होंने अपने बच्चों का नामांकन उनके विद्यालय के साथ प्राइवेट स्कूलों में भी करा रखा है। विडंबना यह भी है कि एक बार वेरीफाई करने के बाद प्रेरणा पोर्टल पर ऐसे बच्चों का नाम हटाने के लिए डिलीट का विकल्प भी नहीं आता है।
अप्रैल में नए सत्र की शुरुआत होते ही बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी शिक्षकों पर दबाव डालते हैं कि अगली कक्षा में गए बच्चों को तत्काल वेरीफाई किया जाए। वह शिक्षकों को यह पता लगाने का भी मौका नहीं देते कि नवीन सत्र में कितने बच्चे दूसरे स्कूलों में जाने वाले हैं। अप्रैल में ही छात्रों के वेरीफिकेशन के बाद डिलीट का आप्शन समाप्त हो जाता है।
नई मुसीबत तब आती है जब तमाम अभिभावक अप्रैल की बजाए जुलाई में अपने बच्चों का नामांकन प्राइवेट स्कूलों में करा देते हैं। पता चलने के बावजूद शिक्षक इन बच्चों को प्रेरणा पोर्टल से डिलीट नहीं कर पाते हैं।
बनाते हैं बहाने
कई शिक्षक बताते हैं कि दूसरे स्कूलों में नामांकन कराने वाले बच्चों की जानकारी दूसरे स्रोतों से मिलने पर जब अभिभावक से इन बच्चों के बारे में पूछा जाता है तो वे झूठ बोलते हैं। कभी कहते हैं कि नानी के घर गया है तो कभी कहते हैं कि बीमार है। | ऐसा करके वे काफी दिन व्यतीत कर देते हैं।
हर समय रहना चाहिए डिलीट का विकल्प
शिक्षकों की मांग है कि शिक्षकों के पास दूसरे स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का नाम अपने स्कूल से डिलीट करने का विकल्प हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए। ऐसा न होने का फायदा अभिभावक उठा रहे हैं और शिक्षक कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
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