सर्विस बुक में दर्ज जन्मतिथि संशोधित नहीं की जा सकती', देखें हाईकोर्ट ऑर्डर
झांसी में कार्यरत शिक्षिका की याचिका खारिज की, वर्ष 2006 में औरैया में बतौर सहायक अध्यापिका हुई थी नियुक्ति
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्मचारी की सर्विस बुक में प्रथम बार दर्ज जन्मतिथि संशोधित नहीं की जा सकती। भले ही बोर्ड में जन्मतिथि को संशोधित कर दिया हो। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला ने झांसी जिले में सेवारत अध्यापिका कविता कुरील की याचिका खारिज करते हुए दिया है। अध्यापिका ने बेसिक शिक्षा अधिकारी झांसी के 19 अप्रैल 2023 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें जन्मतिथि को संशोधित करने से मना कर दिया गया था।
याची के अधिवक्ता का कहना था कि हाईस्कूल के प्रमाणपत्र के अनुसार जन्मतिथि तीन नवंबर 1967 है। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने ठीक भी कर दिया है। ऐसी स्थिति में हाईस्कूल प्रमाणपत्र के आधार पर उक्त नियमावली के तहत याची अध्यापिका की सर्विस बुक में जन्मतिथि तीन नवंबर 1960 की जगह तीन नवंबर 1967 दर्ज की जाए। याची की नियुक्ति बतौर सहायक अध्यापिका वर्ष 2006 में औरैया में हुई थी।
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सरकारी सेवक द्वारा सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम रूप से मान्य होगी। इसे बाद में किसी भी कारण से संशोधित नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल ने दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने सहायक अध्यापिका कविता कुरील की जन्मतिथि में संशोधन की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है।
याची का कहना था कि उसकी वास्तविक जन्मतिथि तीन नवंबर 1967 है, जो उसने अपनी हाईस्कूल परीक्षा में पंजीकरण के समय दर्ज कराई थी। बाद में माध्यमिक शिक्षा परिषद की गलती से उसकी जन्मतिथि तीन नवंबर 1960 दर्ज हो गई। जिसमें संशोधन के लिए उसने माध्यमिक शिक्षा परिषद में प्रार्थना पत्र दिया था। उसका प्रार्थना पत्र लंबे समय तक परिषद के पास लंबित रहा और उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
इस दौरान वर्ष 2006 में याची की नियुक्ति सहायक अध्यापिका पद पर हो गई और सेवा पुस्तिका में उसकी उस समय हाईस्कूल में दर्ज जन्मतिथि तीन नवंबर 1960 ही दर्ज की गई। याची ने जन्मतिथि में संशोधन को लेकर अपनी लड़ाई जारी रखी और अंतत माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए वर्ष 2021 में उसकी मार्कशीट और हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में जन्मतिथि को संशोधित करते हुए तीन नवंबर 1967 कर दिया।
इसके बाद याची ने बेसिक शिक्षा अधिकारी झांसी को प्रार्थना पत्र देकर पूरे प्रकरण से अवगत कराया और अपनी सेवा पुस्तिका में जन्मतिथि संशोधित करने की मांग की। बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उसकी मार्कशीट का माध्यमिक शिक्षा परिषद से सत्यापन करने के बाद उसकी जन्मतिथि में संशोधन का आदेश दे दिया। बाद में बीएसए ने अपना उक्त आदेश वापस ले लिया।
बीएसए ने आदेश वापस लेते समय उत्तर प्रदेश सेवायोजन (जन्मतिथि निर्धारण) नियमावली 1974 के नियम दो का हवाला दिया, जिसके अनुसार सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई जन्मतिथि ही सभी उद्देश्यों के लिए अंतिम जन्मतिथि मानी जाएगी और उसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है।
याची के अधिवक्ता की दलील थी कि याची को नियम दो का लाभ मिलना चाहिए क्योंकि इसके अनुसार यदि कर्मचारी सेवा में आने के समय हाईस्कूल उत्तीर्ण है तो उसकी हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में दर्ज जन्मतिथि मानी जाएगी और यदि हाईस्कूल नहीं उत्तीर्ण है तो जो जन्मतिथि सेवा में आने के समय दर्ज कराई गई, वही अंतिम मानी जाएगी। याची सेवा में आने के समय हाईस्कूल उत्तीर्ण थी इसलिए उसके हाईस्कूल प्रमाण पत्र की सही जन्मतिथि को ही स्वीकार किया जाए।
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