जीर्ण-शीर्ण स्कूलों को लेकर हाईकोर्ट के हालिया फैसले के बाद पढ़ें जागरण संपादकीय
प्राथमिक शिक्षा बच्चों का मूलभूत अधिकार है और इसके लिए उन्हें हर संभव सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
प्राथमिक विद्यालय बच्चों के व्यक्तित्व विकास की नींव होते हैं, जहां से उनके भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है, इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की विद्यालयों के जर्जर भवनों को लेकर चिंता जायज है। कोर्ट ने शाहजहांपुर के जर्जर प्राथमिक विद्यालयों को लेकर दाखिल याचिका पर इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव से पूरे प्रदेश की जानकारी मांगी है और समाधान खोजने के लिए भी कहा है।
रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ शाहजहांपुर में 30 स्कूल खस्ताहाल भवन में चल रहे हैं और उनके ध्वस्तीकरण के लिए एक कमेटी ने संस्तुति भी की है। यदि एक छोटे जिले में यह स्थिति है तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कितने विद्यालय जर्जर अवस्था में होंगे। ऐसे विद्यालयों में बच्चों का पढ़ना अत्यंत ही खतरनाक है। प्राथमिक शिक्षा बच्चों का मूलभूत अधिकार है और इसके लिए उन्हें हर संभव सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। प्राथमिक स्कूलों में शौचालय, पेयजल व्यवस्था, बैठने के लिए बेंच आदि के इंतजाम पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
जरूरी है कि इसके लिए सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी जाए और शासन समस्याओं के निस्तारण को प्राथमिकता देते हुए विचार करे। प्रदेश में एक लाख 33 हजार प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें एक करोड़ 91 लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। इन विद्यालयों में बच्चों को परिधान, किताबें और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार कई योजनाएं भी चला रही है। आपरेशन कायाकल्प के जरिये भी विद्यालयों को उन्नत बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
शाहजहांपुर के मामले में कोर्ट को बताया गया कि स्कूल के भवन की मरम्मत, रखरखाव और पुनर्निर्माण के लिए सरकार से वित्तीय सहायता की मांग की गई है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह समय पर स्कूलों को वित्तीय मदद दे और इसमें यदि लाल फीताशाही आड़े आती है तो अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाए। प्रदेश में कई ग्राम पंचायतों ने सामुदायिकता की भावना से अपने विद्यालयों का कायाकल्प कर आदर्श प्रस्तुत किया है। इससे दूसरी ग्राम पंचायतें भी प्रेरणा ले सकती हैं। आखिरकार यह बच्चों की जिंदगी और उनके भविष्य से जुड़ा मसला है।
• प्रदेश में जर्जर प्राथमिक स्कूल भवनों को लेकर उच्च न्यायालय चिंतित
• शाहजहांपुर में स्कूलों की खराब हालत पर मुख्य सचिव से जवाब तलब
प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश में प्राथमिक स्कूल भवनों की खस्ता हालत पर चिंता जताई है। कहा है कि प्राथमिक शिक्षा नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। स्कूल भवनों को जीर्ण-शीर्ण हालत में नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा है कि प्राथमिक स्कूलों की मरम्मत और उनके नियमित रखरखाव की सरकारी नीति क्या है?
पूछा है कि इसका हल किस तरह से निकाला जाएगा। यह टिप्पणी कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता तथा न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने चंद्रकला की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए की है।
बताया गया कि जिला शाहजहांपुर के पुवायां तहसील के जसवंतपुर ब्लाक की ग्राम पंचायत झरसा स्थित प्राथमिक स्कूल भवन वर्षों से जर्जर हालत में है। इसके कमरों में बैठकर पढ़ने वाले छात्रों के साथ कभी भी हादसा हो सकता है। कोर्ट ने इससे पहले बेसिक शिक्षा अधिकारी से जानकारी मांगी थी।
बताया गया कि इस प्राथमिक स्कूल के साथ ही जिले के 30 और स्कूलों की हालत जर्जर है। एक कमेटी ने 19 नवंबर 2020 को इन स्कूलों का निरीक्षण कर ध्वस्तीकरण की संस्तुति भी की है, मगर अभी तक ध्वस्त कर पुनर्निर्माण नहीं किया जा सका है। एक दिसंबर 2023 को गठित दूसरी कमेटी ने जब निरीक्षण किया तो भी स्कूल उसी जर्जर भवन में चलता पाया गया। अब यह मरम्मत करने लायक नहीं रह गया है।
बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बताया कि स्कूल भवनों की मरम्मत, रखरखाव और पुनर्निर्माण के लिए प्रदेश सरकार से वित्तीय सहायता की मांग की गई है। स्वीकृति मिलने पर निर्माण कराया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि बच्चे ऐसे भवनों में पढ़ाई कर रहे हैं, जो जीर्ण-शीर्ण हैं। ऐसे भवनों में उनके जीवन पर हमेशा खतरा बना रहता है। मुख्य सचिव व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर उठाए गए कदमों की जानकारी दें।
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