केन्द्र के दावे –"AMU न तो अल्पसंख्यक संस्थान न ही अल्पसंख्यकों द्वारा प्रशासित" पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, "जरूरी नहीं अल्पसंख्यक अपने संस्थान खुद चलाएं"
सालिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में 1965 में शिक्षा मंत्री रहे छागला के लोकसभा में भाषण का दिया हवाला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को कहा कि 'यह जरूरी नहीं कि अल्पसंख्यक संस्थानों का प्रशासन सिर्फ अल्पसंख्यक द्वारा स्वयं किया जाना चाहिए। संविधान पीठ ने अनुच्छेद-30 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-30 यह आदेश नहीं देता कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का प्रशासन स्वयं अल्पसंख्यकों के हाथ में हो। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जा बहाल रखने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के तीसरे दिन यह टिप्पणी की।
प्रशासन करने का विवेक दिया गयाः मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि 'अनुच्छेद-30 जिस पर विचार करता पहचानता है, वह अधिकार है, मुख्य रूप से पसंद का अधिकार, अल्पसंख्यकों को उस तरीके से प्रशासन करने का विवेक दिया गया है, जिसे वे उचित समझते हैं। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं।
नई दिल्लीः 'एएमयू (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) संशोधन विधेयक पेश करते हुए 1965 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला ने लोकसभा में दिए भाषण में कहा था कि अलीगढ़ विश्वविद्यालय न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित है और न ही उनके द्वारा प्रशासित (एडमिनिस्टर्ड) होता है। अनुच्छेद- 30 के संबंध में यही कानूनी स्थिति है।' केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री छागला के दो सितंबर, 1965 को लोकसभा में दिए गए भाषण का यह अंश गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। अनुच्छेद-30 अल्पसंख्यकों को अपने संस्थानों की स्थापना व प्रबंधन का अधिकार देता है।
गुरुवार को यूं तो एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का समर्थन करने वालों की ओर से मुख्यतः कपिल सिब्बल ने ही दलील पेश की। मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए 1965 में संसद के अंदर छागला के वक्तव्य की याद दिलाई और कहा कि एएमयू में सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, गैर- मुस्लिम और बहुत से विदेशी छात्र भी पढ़ते हैं। यह देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है।
बहस के दौरान सात सदस्यीय संविधान पीठ की अगुआई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध का भी जिक्र किया और पूछा कि यह युद्ध कब हुआ था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एमसी छागला के तीन सितंबर, 1965 को लोकसभा में दिए भाषण में कहा था कि हम इस समय अघोषित युद्ध की स्थिति में हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इससे संशोधन के उद्देश्य पर कुछ प्रकाश पड़ता 1 है। इससे पहले कपिल सिब्बल ने 1968 के पांच जजों के अजीज बाशा फैसले पर पुनर्विचार की मांग की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। उन्होंने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने के 1981 के कानून संशोधन का भी जिक्र किया जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 के निर्णय में निरस्त कर दिया था।
11 जनवरी 2024
सभी अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन का अधिकार –सुप्रीम कोर्ट
संविधान पीठ ने अनुच्छेद 30 के प्रावधानों का हवाला दिया
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को अनुच्छेद 30 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि 'सभी अल्पसंख्यक समुदायों, चाहे वह धार्मिक हो या भाषाई, को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन का अधिकार है।'
इतना ही नहीं, संविधान पीठ ने यह भी कहा है कि 'किसी शैक्षणिक संस्थान के प्रशासन का कुछ हिस्सा गैर-अल्पसंख्यक अधिकारियों द्वारा संचालित किया जाता है, महज इस आधार पर उस संस्थान का 'अल्पसंख्यक होने के दर्जे को कमजोर नहीं करता है।'
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे बहाल रखने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दूसरे दिन यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि 'महज इस आधार पर कि किसी संस्थान के प्रशासन के कुछ हिस्से की देखभाल गैर-अल्पसंख्यक अधिकारियों द्वारा की जाती है, जिनके पास संस्था में उनकी सेवा या संस्था के साथ उनके जुड़ाव के आधार पर प्रतिनिधि आवाज है, इससे उस संस्थान के अल्पसंख्यक होने के चरित्र को कमजोर नहीं करेगा। पीठ ने कहा कि लेकिन यह उस बिंदु तक नहीं हो सकता, जहां पूरा प्रशासन गैर-अल्पसंख्यक हाथों में हो।
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुनवाई
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की संस्थापना 1875 में एक अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में हुई थी। लेकिन 1967 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को यह कहते हुए खत्म कर दिया था कि यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।
मुस्लिम समुदाय की शिक्षा के लिए हुई थी स्थापना
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध करने वाले इस बात पर जोर दे रहे हैं कि चूंकि यह संस्थान सरकार से सहायता पाने वाला एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए यह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि 'ये सभी पहलू किसी संस्थान के अस्तित्व, व्यावहारिक अस्तित्व के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता धवन ने पीठ को बताया कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम समुदाय को शिक्षित करने के लिए की गई थी।
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