पटना हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, कहा कि विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति के लिए शिक्षक जिम्मेदार नहीं
शिक्षकों की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
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दिल्ली/पटना । बिहार के लाखों नियोजित शिक्षकों की आपत्ति को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाईकोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी है. मामला वर्ष 2016 का है जब शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव और ग्रामीण विकास विभाग के सचिव ने संयुक्त रूप से आदेश जारी कर स्कूलों की जांच में जीविका दीदियों को लगा दिया था और 75 प्रतिशत से कम छात्र की उपस्थिति पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के वेतन से 50 प्रतिशत तक कटौती करने का आदेश दे दिया था.
इसे परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वंशीधर ब्रजवासी ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस बारे में वंशीधर ब्रजवासी ने बताया कि इसकी सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने दो अगस्त, 2018 को आदेश पारित करते हुए सरकार के इस आदेश को निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया कि बच्चों की उपस्थिति के लिए शिक्षक जिम्मेदार नहीं हैं और यह भी कहा कि जीविका दीदियां गैरसरकारी संगठन की सदस्य मात्र हैं, जिन्हें स्कूलों के निरीक्षण का कोई अधिकार नहीं है.
ब्रजवासी ने बताया कि उसके बाद पटना हाईकोर्ट के फैसले को सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी. सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा दायर एसएलपी को शुक्रवार 23 फरवरी को खारिज कर दिया. फैसले से शिक्षा विभाग के उस आदेश पर सवाल खड़े हो गए हैं जिसमें छात्रों की कम उपस्थिति के लिए शिक्षकों को दोषी ठहराया जाता है. यही नहीं अब जीविका दीदी या समकक्ष से विद्यालय निरीक्षण भी सरकार नहीं करवा सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकारी स्कूलों व शिक्षकों की जांच जीविका दीदी या टोला सेवक लेखपाल या कोई सरकारी लिपिक नहीं कर सकते हैं बल्कि विद्यालय और शिक्षकों की जांच अधिकारी ही कर सकते हैं साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चों की उपस्थित सब प्रतिशत कारण शिक्षकों की जिम्मेदारी नहीं है
हाई कोर्ट आर्डर 👇
We find that the teachers or headmaster of the school may be facilitated with the infrastructures and systems by which they can inform the parents/guardians of a student about the attendance and other developments with regard to their respective wards, but the headmaster and teachers whose only duty is to teach the students cannot be burdened with a duty to contact the parents individually. It is for the State Government to provide such infrastructures/systems/devices in the schools which may be used to inform the parents/guardians of the students. We are also of the opinion that for the shortage of attendance of the school on the day.
of inspection by no means the headmaster or teachers of the school may be punished by deducting their salary. Deduction of salary has got a civil consequence and, therefore, such punishment cannot be imposed only because the students were found short in attendance on the day of inspection of the school. We, therefore, find that Clause-3 of the letter providing for the penal provision is also bad in law and cannot be allowed to operate. 15. In result, the impugned letter no.6067 dated 03.08.2016 in so far as it talks of conferment of power on Jeevika to inspect and supervise the school and then provides for penal provision under Clause-3 of the letter wherein salary of the headmaster and teachers of the school may be deducted in case of shortage of attendance of the students below 75% on the day of inspection stands quashed.
सुप्रीम कोर्ट ऑर्डर 👇
हाईकोर्ट ऑर्डर 👇
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