मदरसा शिक्षा अधिनियम असंवैधानिक घोषित करने के बाद शुरू हुई तैयारी, कानूनी राय ले रहे मदरसा संचालक
बोले, मदरसा संचालक 2004 के एक्ट के पहले ही सभी मदरसे हुए पंजीकृत
क्या है फैसला
कोर्ट ने अपने फैसले में मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को संविधान के अनुच्छेद 13 समानता का अधिकार व अनुच्छेद 21 जीवन व 21 ए शिक्षा के मौलिक अधिकार के खिलाफ माना है। इसे लेकर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में दिनभर चर्चा चलती रही। अफसरों ने माना कि समानता के अधिकार के तहत धार्मिक शिक्षा पर सरकार अनुदान नहीं दे सकती, वहीं अनुच्छेद 21 बहुत बड़ा है। लेकिन इसमें शिक्षा जुड़ा है जो निःशुल्क शिक्षा पर है।
प्रयागराज । मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद मदरसा संचालकों ने इसे लेकर अपने स्तर पर तैयारी शुरू की है। मदरसा संचालकों का कहना है कि मदरसों के बच्चों को स्थानांतरित करने की बात पर समस्या है। इसे लेकर वकीलों से कानूनी राय ली जा रही है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में मदरसा शिक्षा अधिनियम 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट के फैसले के बाद अब इस पर अपनी तैयारी शुरू हुई है। ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के संगठन मंत्री जुनैद अहमद का कहना है कि कोर्ट का आदेश सबसे ऊपर है। अब इस फैसले पर वह वकीलों से कानूनी राय लेंगे। जिसके बाद तय होगा कि स्थिति क्या बनेगी।
कोर्ट ने जिस अधिनियम की बात कही है यहां पंजीकृत सभी मदरसे 2004 से पहले के हैं। वहीं आदेश में वेतन और अनुदान पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। ऐसे में लगता है कि शिक्षकों के वेतन पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि मदरसा शिक्षकों को वेतन 1921 की शिक्षक संहिता के अनुसार मिलता है। मदरसा बोर्ड या शिक्षा संहिता से इसका कोई सरोकार नहीं है। हां बच्चों को स्कूलों में शिफ्ट करने की बात जरूर है। वहीं फूलपुर के जामिया अरबिया तालिमुल इस्लाम के प्रबंधक अनीस अहमद का कहना है कि विद्यार्थियों, शिक्षकों व इन्फ्रास्ट्रक्चर के भविष्य को लेकर चिंता है। बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए। मदरसा नाफे उल उलूम अंजना सैदाबाद के निजाम सरवर का कहना है कि इस फैसले पर कानूनी राय ली जा रही है। मेजा के मदरसा अरबिया तालेमुल कुरान के हाफिज अशफाक अहमद का कहना है कि शासन और कोर्ट का जो फैसला होगा, उस पर काम करेंगे।
हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद मदरसा बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की करेगा सिफारिश
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड प्रदेश सरकार से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की सिफारिश करेगा। बोर्ड के चेयरमैन डा.इफ्तेखार अहमद जावेद ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर कहा कि दरअसल सरकार के मदरसा एक्ट को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट के इस फैसले से आश्चर्य हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को समझाने में हमसे कहीं ना कहीं चूक हुई है।
हाईकोर्ट ने वर्ष 2004 के मदरसा एक्ट को अंसवैधानिक बताया है इसलिए सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है और उसे जाना भी चाहिए। इसके लिए यूपी मदरसा बोर्ड जल्द ही हाईकोर्ट के पूरे आदेश की समीक्षा कर अपनी सिफारिश प्रदेश सरकार को भेजेगा। उन्होंने कहा कि मदरसा बोर्ड को गठन प्राच्य भाषाओं के पठन-पाठन के लिए किया गया जिस तरह से संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत के पठन पाठन में वेद व पुराण आदि की शिक्षा दी जाती है, उसी तरह मदरसों में अरबी फारसी जैसी प्राच्य भाषाओं में कुरआन व इस्लाम की शिक्षा दी जाती है। चेयरमैन ने तर्क दिया कि सरकारी ग्रांट मदरसों में धार्मिक शिक्षा के लिए नहीं मिलती बल्कि प्राच्य भाषाओं अरबी फारसी और संस्कृत विद्यालयों को संस्कृत के प्रोत्साहन के लिए मिलती है।
हाईकोर्ट के फैसले खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगा टीचर्स एसोसिएशन
मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून को असांविधानिक घोषित करने के फैसले को बताया आशा के विपरीत, कहा- शिक्षकों का क्या होगा, इस पर कोई दिशा-निर्देश नहीं
लखनऊ। यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून को असांविधानिक घोषित किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरेबिया सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। एसोसिएशन के महासचिव दीवान साहब दीवान साहब जमां खान ने बताया कि हाईकोर्ट का फैसला आशा के विपरीत है।
उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में अल्पसंख्यकों को संस्थान खोलने और अनुदान देने में भेदभाव न करने के प्रावधान पर भी ध्यान नहीं दिया। जबकि अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मदरसा बोर्ड अधिनियम को रद्द करने के साथ छात्रों को प्राथमिक व इंटर कॉलेजों में स्थानांतरित करने और स्कूलों की कमी होने पर नए स्कूल खोलने का निर्देश देने से मदरसे स्वतः बंद हो जाएंगे। शिक्षकों का क्या होगा, इस पर कोई दिशा-निर्देश नहीं है।
मदरसों को भाषा संरक्षण के लिए मिलता है अनुदान
मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि सरकार ने अरबी, फारसी, संस्कृत जैसी भाषाओं को जिंदा रखने के लिए एक्ट बनाया था। इसके तहत अरबी, फारसी और संस्कृत बोर्ड बनाए गए। सरकार मदरसों को धार्मिक शिक्षा के लिए अनुदान नहीं देती है, बल्कि भाषाओं के संरक्षण के लिए ग्रांट मिलता है। अरबी भाषा में कुरान पढ़ाया जाता है तो संस्कृत भाषा में वेद और पुराण पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार का जो भी निर्णय होगा हम उसी के मुताबिक आगे काम करेंगे।
कानून बनाकर मदरसा बोर्ड को जिंदा करे सरकार : ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में मदरसों का अहम रोल रहा है। उन्होंने कोर्ट के निर्णय पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि मेरी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुजारिश है कि ऐसा कानून बनाएं, जिससे मदरसा बोर्ड दोबारा जिंदा किया जा सके।
हर धर्म की बुनियाद ही सेक्युलरिज्म है
आसिफी मस्जिद के इमाम ए जुमा मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने कहा कि हाईकोर्ट ने मजहबी तालीम को सेक्युलरिज्म के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में मजहबी तालीम दी जाती है। सरकार का कोई मजहब नहीं होता है. लिहाजा सरकार उनकी निगरानी करती है और उनको सहुलियतें देती है। हमारे देश में भी संस्कृत स्कूलों में मजहब की तालीम दी जाती है। मजहबी तालीम देना सेक्युलरिज्म के खिलाफ नहीं हो सकता है, क्योंकि हर धर्म की बुनियाद सेक्युलरिज्म ही है।
एक्ट की कमी को करें दूर
इदारा शरईया फिरंगी महली के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली सरकार ने कहा कि मदरसों में निचले स्तर के गरीब बच्चों की मुफ्त शिक्षा दी जाती है। अगर मदरसा एक्ट में कोई कमी है तो उसे दूर किया जा सकता है
लखनऊ । उप्र मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद अगर अनुदानित मदरसे बंद कर दिए जाते हैं तो कार्यरत करीब 10,200 शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा।
वर्तमान में मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त तहतानिया कक्षा 1 से 5, फौकानिया कक्षा 5 से 8 और आलिया व उच्च आलिया स्तर यानि हाई स्कूल या इससे ऊपर के लगभग 16,460 मदरसे हैं। इनमें सरकार से अनुदानित कुल 560 मदरसे हैं। इन मदरसों में मुंशी-मौलवी हाई स्कूल समकक्ष, आलिम इंटर समकक्ष, कामिल स्नातक और फाजिल परास्नातक के समकक्ष पढ़ाई होती है।
मदरसों को संचालित करने के लिए वर्ष 2004 में बने मदरसा एक्ट को हाईकोर्ट ने असांविधानिक करार दिया है। इसके बाद मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों व कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है।
मदरसों के 13 लाख विद्यार्थियों के भविष्य पर छाया अंधेरा : मदरसा शिक्षा परिषद की रजिस्ट्रार डॉ. प्रियंका अवस्थी ने बताया कि मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त 16,460 मदरसों में 13 लाख 83 हजार 107 विद्यार्थी शिक्षा पा रहे हैं। वहीं, इनमें शामिल 560 अनुदानित मदरसों में एक लाख 92 हजार 317 विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद मदरसों के शिक्षा पा रहे इन 13 लाख से अधिक विद्यार्थियों का भविष्य पर अंधेरा छा गया है।
उत्तर प्रदेश में सरकारी सहायत प्राप्त मदरसों पर लगेगा ताला, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को असांविधानिक ठहराया
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त 560 से अधिक मदरसों पर ताला लगेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असांविधानिक करार दिया। अदालत ने कहा, यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ भी है, जो संविधान के मूल ढांचे का अंग है। कोर्ट ने राज्य सरकार को योजना बनाकर इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में समायोजित करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब राज्य सरकार के निर्देश पर एसआईटी राज्य में अवैध मदरसों की जांच कर रही है। मदरसों को विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद की जांच के लिए पिछले साल अक्तूबर में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था। इसकी जांच में अब तक 13 हजार से अधिक मदरसे अवैध पाए गए हैं, जिन्हें बंद करने की तैयारी चल रही है।
जस्टिस विवेक चौधरी व जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अंशुमान सिंह राठौड़ की रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए इस कानून को अधिकार से परे (अल्ट्रावायर्स) भी बताया। राठौड़ ने मदरसा बोर्ड की सांविधानिकता को चुनौती देते हुए मदरसों का प्रबंधन केंद्र व राज्य सरकार के स्तर पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से किए जाने के औचित्य पर सवाल उठाए थे।
राज्य सरकार का विरोध
याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि बोर्ड धार्मिक शिक्षा दे रहा है, पर राज्य सरकार को ऐसी शिक्षा देने का सॉविधानिक अधिकार है। धार्मिक शिक्षा और निर्देश देना, वर्जित या अवैध नहीं है। ऐसे धार्मिक शिक्षा के लिए अलग से बोर्ड जरूरी है, जिसमें उसी धर्म के लोग हों।
अध्ययन के बाद निर्णय
यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा कि फैसले का अध्ययन करने के बाद अगले कदम पर फैसला होगा। 20 साल बाद कानून को असांविधानिक करार दिया गया है। इसमें कहीं चूक हुई है। हमारे वकील कोर्ट के समक्ष मामले को सही तरीके से नहीं रख सके। उन्होंने कहा, मदरसे बंद होंगे, तो कई शिक्षक बेरोजगार हो जाएंगे।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा, आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए।
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