चुनावी साल में भी खाली हैं शिक्षामित्रों के हाथ, मानदेय वृद्धि पर सरकार का रुख साफ नहीं, सात साल से नहीं बढ़ाया गया मानदेय
प्रदेश के 1.15 लाख से अधिक परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में दो दशक से अधिक समय से बच्चों को पढ़ा रहे 1.48 लाख शिक्षामित्रों के हाथ चुनावी साल में भी खाली हैं। हाईकोर्ट ने 12 जनवरी को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि सम्मानजनक और आजीविका के लिए शिक्षामित्रों को आवश्यक मानदेय का भुगतान करे। मौजूदा समय में शिक्षामित्रों का मानदेय बहुत कम है, इसलिए सरकार एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित कर मानदेय वृद्धि पर निर्णय ले।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद 18 जनवरी को बेसिक शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में लखनऊ में शिक्षामित्रों के नेताओं संग बैठक हुई थी। शिक्षामित्रों को उम्मीद थी कि उनके पक्ष में जल्द कोई निर्णय होगा लेकिन सवा महीने से अधिक बीतने के बाद भी मानदेय वृद्धि के संबंध में कोई आदेश जारी नहीं हो सका है। अब जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की अधिसूचना का समय करीब आता जा रहा है, शिक्षामित्रों की निराशा बढ़ती जा रही है क्योंकि चुनावी बिगुल फुंकने के बाद कम से कम तीन महीने कुछ होने की उम्मीद नहीं रहेगी।
उत्तर प्रदेश बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव का कहना है कि पहले से संकटों का सामना कर रहे शिक्षामित्रों के लिए दस हजार मानदेय पर गुजर करना मुश्किल हो रहा है। उम्मीद है सरकार उनकी तकलीफ को समझकर जल्द कोई निर्णय लेगी। प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष त्रिभुवन सिंह ने भी मानदेय वृद्धि पर जल्द निर्णय लेने की मांग की है।
सात साल से नहीं बढ़ाया गया मानदेय
यूपी के शिक्षामित्रों का मानदेय सात साल से नहीं बढ़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2017 को 1.37 लाख शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन को निरस्त कर दिया था। उसके बाद शिक्षामित्रों ने 12 माह का मानदेय देने, सेवाकाल 62 वर्ष करने, मानदेय में आवश्यक वृद्धि करने, प्रतिवर्ष महंगाई के क्रम में मानदेय बढ़ाने, निशुल्क चिकित्सा सुविधा आदि मांगों को लेकर आंदोलन किया था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने अगस्त 2017 में मानदेय 3500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार कर दिया था। 26 मई 1999 को यूपी में शिक्षामित्र योजना लागू होने के बाद अक्तूबर 2005 में मानदेय 2250 रुपये से बढ़कर 2400 किया गया था। 15 जून 2007 को मानदेय 2400 रुपये से बढ़कर 3000 हुआ था।
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