आखिर क्यों सरकार को स्थगित करना पड़ा डिजिटल हाज़िरी का फैसला?
बड़ा सवाल यह है कि डिजिटल हाजिरी इतना बड़ा मुद्दा कैसे बन गया?
सरकार ने इतनी जल्दी क्यों समझी आंदोलन की अहमियत?
क्यों हुई इतनी राजनीति? क्यों फैला इतना आक्रोश?
लखनऊ: बेसिक शिक्षा विभाग ने आठ जुलाई से शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी का आदेश दिया। शिक्षकों ने इसका विरोध शुरू किया। विभाग ने शुरुआत में कुछ सख्ती की, लेकिन शिक्षक हाजिरी लगाने को तैयार नहीं हुए। शिक्षकों के इस विरोध में राजनीतिक दल भी कूद गए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बाद मायावती भी शिक्षकों के पक्ष में बड़ी हो गई। यहां तक कि सत्ता पक्ष के अंदर से भी डिजिटल हाजिरी के खिलाफ आवाजे उठीं।
ऐसे में खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने हस्तक्षेप किया और आखिरकार डिजिटल हाजिरी का फैसला सरकार ने स्थगित कर दिया है। अब सवाल यह है कि यह इतना बड़ा मुद्दा कैसे बन गया? इसको लेकर इतनी राजनीति क्यों हुई और क्यों सरकार को फैसला स्थगित करना पड़ा?
क्यों हुई इतनी राजनीति? क्यों फैला इतना आक्रोश?
इस मुद्दे पर राजनीति की मुख्य वजह है बेसिक शिक्षकों की तादाद। प्रदेश में कुल 1.33 लाख प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और कंपोजिट विद्यालय है। इनमें शिक्षको, शिक्षामित्रो, अनुदेशकों और शिक्षणेतर कर्मचारियों की कुल संख्या लगभग 6.50 लाख है। ऐसे में शिक्षक एक बड़ा वोट बैंक है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या लगभग 1.68 करोड़ है।
शिक्षको का बच्चों के साथ उनके परिवारों से भी संपर्क होता है। विभिन्न योजनाओं में ग्राम प्रधान से लेकर प्रमुख लोगों के संपर्क में रहते है। सभी तरह के सरकारी अभियानों में इनकी ड्यूटी लगती है। ऐसे में ये शिक्षक वोटरो के एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर सकते है। यही वजह है कि सभी दल शिक्षकों के साथ हमदर्दी दिखाकर उनको अपने साथ करना चाहते है।
क्या है डिजिटल हाजिरी?
बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की हाजिरी, बच्चों की हाजिरी और मध्याह्न भोजन का ब्योरा सहित 12 रजिस्टर डिजिटल करने के आदेश दिए थे। इसके लिए हर स्कूल में शिक्षकों को दो-दो टैबलेट दिए गए हैं। इनमें तीन काम ऐसे हैं, जो रोजाना तय समय में पूरे करने हैं। सबसे पहले 7:45 से 8:30 बजे और फिर छुट्टी से पहले 2:15 से 2:30 बजे तक शिक्षकों को फेस रिकग्निकशन के जरिए अपनी हाजिरी दर्ज करनी है। सुबह 8 से 9 बजे के बीच सभी बच्चों की डिजिटल हाजिरी दर्ज करनी है। MDM का ब्योरा भी दोपहर 12 बजे तक दर्ज करना है।
क्या है विरोध की बड़ी वजह?
शिक्षकों का कहना है कि बेसिक स्कूल दूर-दराज के इलाकों में होते हैं। शिक्षक 40-50 किलोमीटर दूर अपने साधनों से पहुंचते हैं। ऐसे में रास्ता जाम या किसी और वजह से देर हो सकती है। कई स्कूल तो ऐसे हैं जहां बारिश में पानी भर जाया है या रास्ते लबालब होते हैं। नेटवर्क की भी दिक्कत है। ऐसे में तय समय में हाजिरी लगा पाना आसान नहीं है। छुट्टी से पहले भी हाजिरी दर्ज करनी है।
शिक्षकों को आकस्मिक स्थिति में कहीं जाना पड़ा तो भी दिक्कत होगी। बच्चों की हाजिरी और MDM का ब्योरा भी दर्ज करना है। इससे पढ़ाई का काफी समय इन कामों में खप जाएगा। बेसिक शिक्षकों को साल भर में 14 कैजुअल लीव (CL) मिलती हैं। अर्जित अवकाश (EL) की सुविधा नहीं है। पूरी नौकरी में एक साल की मेडिकल लीव की व्यवस्था है।
अगर शिक्षक लेट पहुंचते हैं तो हाफ लीव या तीन दिन लेट होने पर एक CL काटी जा सकती है। विभाग ने जो व्यवस्था लागू की है, उसके अनुसार लेट पहुंचने पर सीधे वेतन काट लिया जाएगा। शिक्षकों का कहना है कि विभाग ने इन दिक्कतों को समझे बिना नई व्यवस्था लागू कर दी।
क्या तर्क दे रहा विभाग?
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि डिजिटल हाजिरी से पारदर्शिता आएगी। शिक्षकों की उपस्थिति की सही जांच होगी। शिक्षक समय पर आते हैं तो इसका छात्रों की पढ़ाई पर सकारात्मक असर होगा। शिक्षकों को भी हर काम के लिए अलग-अलग रजिस्टर नहीं बनाने पड़ेंगे। सही ब्योरा मिलने से योजनाएं बनाने में लाभ मिलेगा। शिक्षकों, कर्मचारियों का उत्पीड़न बंद होगा।
ऐसे शुरू हुई राजनीति
आठ जुलाई को जैसे ही डिजिटल हाजिरी का आदेश लागू हुआ तो शिक्षकों ने विरोध शुरू कर दिया। हालांकि, वे स्कूल जाते रहे, मैनुअल हाजिरी लगाई और पढ़ाते भी रहे। दो दिन हाजिरी न लगने पर कुछ जिलों में BSA ने वेतन काटने के आदेश भी दिए लेकिन शिक्षक हाजिरी को तैयार नहीं हुए। इसी बीच राजनीतिक दलों की ओर से शिक्षकों के पक्ष में प्रतिक्रिया आने लगी।
नौ जुलाई को सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान आया। उन्होंने शिक्षकों की व्यावहारिक समस्याओं को लेकर X पर पोस्ट किया। सपा सांसद आनंद भदौरिया सहित कुछ विधायकों ने भी विरोध जताया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि शिक्षकों की समस्याएं समझनी चाहिए।
अब बसपा प्रमुख मायावती ने बयान दिया है कि जरूरी बुनियादी सुविधाओं का स्कूलों में घोर अभाव है। इसके लिए समुचित बजट का प्रावधान कर समस्याओं को हल करने की बजाय सरकार ध्यान बंटाने के लिए दिखावटी काम कर रही है। इस बीच सत्ता पक्ष से MLC देवेंद्र प्रताप सिंह ने CM को पत्र लिखकर कहा कि अधिकारी सरकार की छवि खराब कर रहे हैं। ऐसे निर्णयों से सरकार की शिक्षक कर्मचारी विरोधी छवि बन रही है।
सरकार ने इतनी जल्दी क्यों समझी आंदोलन की अहमियत?
शिक्षकों की अहमियत सरकार अच्छी तरह समझती है। यही वजह है कि सीएम खुद इस मसले पर नजर बनाए रहे। उन्होंने दो बार इस मामले का संज्ञान लेकर हस्तक्षेप किया। शिक्षकों से बातचीत कर मसले का हल निकालने की नसीहत दी। आखिरकार उन्होंने इस मसले पर मुख्य सचिव (CS) को आगे किया। पहले CS मनोज कुमार सिंह ने अधिकारियों के साथ बैठक की। इसके बाद दोबारा अधिकारियों के साथ शिक्षकों के प्रतिनिधियों को भी बुलाया। डिजिटल हाजिरी का फैसला स्थगित किया। कमिटी गठित कर दी और कहा कि सभी पक्षों से बातचीत करके ही आगे निर्णय लिया जाएगा।
प्रदेश सरकार का शिक्षकों पर जल्दबाजी का निर्णय : मायावती
लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती भी मंगलवार को शिक्षकों के समर्थन में उतरी। उन्होंने एक्स पर लिखा कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों की बदहाली की शिकायत आम है। इस पर समुचित बजट प्रावधान कर समस्याओं का उचित हल निकालने की जगह सरकार दिखावटी कार्य कर रही है। शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी भी सरकार का ऐसा ही कदम है जो जल्दबाजी में थोपा गया है। इससे ज्यादा जरूरी शिक्षकों की सही व समुचित संख्या में भर्ती के साथ ही बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाए। ब्यूरो
उपचुनाव में हार के डर से स्थगित किया फरमान: अखिलेश
लखनऊ। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार ने आने वाले उपचुनाव में हार के डर से शिक्षकों की 'डिजिटल अटेंडेंस' का फरमान स्थगित किया है। इसे पूरी तरह से निरस्त होना चाहिए। उन्होंने एक्स के माध्यम से कहा कि भाजपा का असली चेहरा शिक्षकों व आम जनता के सामने आ गया है। शिक्षक व आम जनता भाजपा को उपचुनाव ही नहीं, अगला हर चुनाव हराएगी। जनता ने भाजपा सरकार की मनमानी के बुलडोजर के ऊपर जनशक्ति का बुलडोजर चला दिया है।
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