शिक्षकों को आठ साल पहले मिला वेतनमान, अब उठी आपत्ति
● समाज कल्याण से अनुदानित विद्यालयों के शिक्षकों का मामला
● निदेशक ने वित्त विभाग की अनुमति लिए के बगैर कर दिया था लागू
● शासन ने मांगा अब जवाब, पेंशन की लड़ाई लड़ रहे शिक्षक परेशान
लखनऊ । समाज कल्याण विभाग से अनुदानित प्रदेश के 443 प्राथमिक विद्यालयों के 1392 शिक्षकों को आठ साल पहले मिले सातवें वेतनमान पर अब आपत्ति उठी है। शासन के विशेष सचिव रजनीश चन्द्रा ने 29 जुलाई को समाज कल्याण विभाग के निदेशक को पत्र लिखकर बगैर वित्त विभाग की अनुमति के सातवां वेतनमान जारी करने पर स्पष्टीकरण मांगा है। 2016 में तत्कालीन निदेशक ने बिना शासन और वित्त विभाग की अनुमति के शिक्षकों को सातवें वेतनमान की संस्तुति के अनुरूप वेतनवृद्धि का लाभ दे दिया था।
उस वक्त प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया था कि सहायता प्राप्त स्कूल के शिक्षकों व कर्मचारियों को सातवें वेतनमान की संस्तुति देने के लिए अलग से वित्त विभाग की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। उसी आदेश के आधार पर तत्कालीन निदेशक ने समाज कल्याण विभाग के प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों को वेतनमान का आदेश जारी कर दिया जबकि ये स्कूल अनुदानित की श्रेणी में है न कि सहायता प्राप्त विद्यालय की श्रेणी में है।
ठीक इसी प्रकार की गड़बड़ी छठवां वेतनमान जारी करने में भी हुई थी जिस पर शासन ने रिकवरी का आदेश जारी किया था। जिस पर शिक्षकों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी थी। जिसके बाद रिकवरी के आदेश पर रोक लगा दी गई थी और बढ़ा हुआ वेतन वापस नहीं करना पड़ा था।
अब शिक्षकों को फिर से डर सता रहा है कि कहीं बढ़े हुए वेतन की रिकवरी का आदेश जारी न हो जाए। इसके अलावा सातवें वेतनमान का भुगतान नियम संगत न होने पर भविष्य में आठवें वेतनमान के भुगतान में अड़चन आएगी। इस गड़बड़ी के कारण हाईकोर्ट में पेंशन की लड़ाई लड़ रहे सेवानिवृत्त शिक्षकों की लड़ाई भी कमजोर हो रही है क्योंकि नियम संगत भुगतान नहीं होगा तो भविष्य में किसी भी लाभ के दावेदार नहीं होंगे।
समाज कल्याण विभाग के अनुदानित स्कूल में कार्यरत शिक्षकों के साथ सालों से दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। सातवें वेतनमान के भुगतान में निदेशक की एक गलती के कारण सैकड़ों शिक्षक परेशान हैं। –पूर्णमासी दीन, प्रांतीय महामंत्री, अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालय शिक्षक एसोसिएशन
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