अभिभावकों की नीयत डीबीटी पर पड़ रही भारी, बच्चों के अधिकारों के साथ अपने ही कर रहे खिलवाड़
उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों के बच्चों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा जारी की गई डायरेक्ट बैनफिट ट्रांसफर (डीबीटी) स्कीम का उद्देश्य बच्चों को यूनिफॉर्म सहित अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना था। इस योजना के तहत प्रत्येक बच्चे के अभिभावकों के खाते में 1200 रुपये की धनराशि भेजी गई। एक माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन स्कूलों में कई बच्चे अब भी बिना यूनिफॉर्म या पुरानी ड्रेस में ही स्कूल आ रहे हैं।
ये स्थिति चिंताजनक है और सवाल उठाती है कि आखिर यह धनराशि कहां जा रही है? क्या अभिभावक इस धनराशि का सही उपयोग नहीं कर रहे हैं? डीबीटी योजना का मूल उद्देश्य बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ एक स्वाभिमान भरा वातावरण प्रदान करना था, जिसमें वे एक जैसी यूनिफॉर्म पहनकर आत्मविश्वास से पढ़ाई कर सकें। लेकिन जब 60 फीसदी बच्चे बिना यूनिफॉर्म के स्कूल आ रहे हैं, तो यह साफ है कि धनराशि का सही उपयोग नहीं हो रहा है।
कई स्कूलों में देखा गया कि बच्चे पुरानी ड्रेस पहनकर, हवाई या टूटी-फूटी चप्पलों में स्कूल आ रहे हैं। ऐसे में शासन की वह मंशा, जिसके तहत परिषदीय स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों की तरह चमकाने और बच्चों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने का उद्देश्य था, कहीं न कहीं विफल हो रहा है। इससे बच्चों के अधिकारों के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है।
अभिभावकों की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि वे बच्चों के भविष्य के प्रति सचेत होते तो इस धनराशि का सही उपयोग करते। बच्चों के अधिकारों और उनकी शिक्षा के प्रति यह लापरवाही केवल उनके भविष्य को ही नहीं, बल्कि देश के भविष्य को भी अंधकार में धकेलने वाली है। शासन को इस पर कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि इस धनराशि का सही उपयोग सुनिश्चित हो सके और बच्चों को उनके अधिकार मिल सकें।
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