तो राजकीय इंटर कॉलेजों में पढ़ाएंगे बेसिक टीचर? शिक्षकों की कमी के कारण मुरादाबाद में डीएम ने लगाई बेसिक शिक्षकों की ड्यूटी
प्रदेश में राजकीय शिक्षकों की भारी कमी, दूसरे स्कूलों से संबद्ध किए जा रहे टीचर
06 अक्टूबर 2024
लखनऊ : मुरादाबाद में राजकीय इण्टर कालेजों में शिक्षक कम हैं। ऐसे में छात्रों का कोर्स पूरा करवाने के लिए अब बेसिक शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। डीएम के निर्देश पर वहां के जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) और बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने 25 शिक्षकों की लिस्ट भी जारी की है। ये शिक्षक इस सत्र के अंत तक राजकीय हाईस्कूलों और इंटर कॉलेजों में एक पीरियड रोजाना लेंगे। राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की कमी का यह आलम सिर्फ मुरादाबाद में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का ऐसा ही हाल है। कई कॉलेज तो ऐसे हैं जहां शिक्षकों की स्थायी तैनाती की ही नहीं गई। दूसरे कॉलेजों से शिक्षक संबद्ध करके किसी तरह स्कूल चलाए जा रहे हैं।
शिक्षकों के 50% पद खाली
प्रदेश में कुल 2,500 राजकीय हाईस्कूल और राजकीय इंटर कॉलेज हैं। इनमें करीब 22,000 शिक्षकों के पद हैं, लेकिन वर्तमान में तैनात शिक्षकों की संख्या 11,900 है। कुल मिलाकर लगभग 50% शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें भी कुछ स्कूलों में काफी शिक्षक हैं और कुछ में शिक्षकों की संख्या बहुत कम है। जहां शिक्षक नहीं हैं या जहां बहुत कम हैं, वहां दूसरे स्कूलों से शिक्षकों को संबद्ध करके स्कूल संचालित किए जा रहे हैं।
यहां भी जुगाड़ का सहारा
राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर पांडेय बताते हैं कि प्रयागराज का राजकीय इंटर कॉलेज देवघाट घूस 2022 में शुरू हुआ लेकिन यहां आज तक एक भी शिक्षक की स्थायी तैनाती नहीं की गई। कक्षा छह से 12 तक कॉलेज चलता है, लेकिन यहां कुल तीन शिक्षक अलग अलग कॉलेजों से हटाकर संबद्ध किए गए हैं। इसी तरह बांदा के राजकीय इंटर कॉलेज, पैलानी में 1,200 छात्र हैं। यह काफी पुराना इंटर कॉलेज है, लेकिन यहां सिर्फ एक प्रिंसिपल और तीन शिक्षक हैं। ललितपुर के राजकीय इंटर कॉलेज, चंदन नगर में 850 छात्र हैं। बिना प्रिंसिपल के इस कॉलेज में महज दो शिक्षक तैनात हैं। इस तरह प्रदेश में कई कॉलेज हैं, जहां शिक्षकों का इसी तरह टोटा है।
क्यों आई यह नौबत ?
दरअसल, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) लागू होने के बाद केंद्र के सहयोग से हर साल नए राजकीय हाईस्कूल और इंटर कॉलेज खुल रहे हैं। प्रदेश में 2010 तक करीब 1,000 राजकीय हाईस्कूल और इंटर कॉलेज थे। RMSA लागू होने के बाद 14 साल में 1,489 नए हाईस्कूल और इंटर कॉलेज खुल गए। स्कूलों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई। । उस अनुपात त में शिक्षकों की भर्ती हुई नहीं। राजकीय शिक्षकों की आखिरी भर्ती 2018 में हुई थी, उनको ही 2023 तक तैनाती दी गई है। हर साल शिक्षक रिटायर भी हो रहे हैं। यही वजह है कि जितने शिक्षकों की जरूरत है, उसके आधे ही शिक्षक हैं।
बेसिक के स्कूलों में भी गुणवत्ता जरूरी
बेसिक स्कूलों के शिक्षकों की ड्यूटी राजकीय इंटर कॉलेजों में लगाए जाने पर प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक असोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विनय कुमार सिंह का कहना है कि बेसिक में भी कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। तो फिर क्या वहां राजकीय शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाएगी। सहयोग तो दोतरफा होता है। बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता पर भी अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए।
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मुरादाबाद: राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए प्रशासन ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए परिषदीय शिक्षकों को भी इंटर कॉलेजों में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। इस योजना के तहत, प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों के शिक्षकों को अस्थायी तौर पर राजकीय स्कूलों में पढ़ाने के लिए लगाया गया है।
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों को राहत
जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. अरुण कुमार दुबे ने बताया कि जिलाधिकारी के निर्देशानुसार 23 सितंबर को जारी आदेश में राजकीय स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है। इस आदेश में जिले के 25 राजकीय स्कूलों में कुल 52 परिषदीय शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है, ताकि शैक्षिक सत्र के अंत तक छात्रों को उचित शिक्षा मिल सके और पाठ्यक्रम समय पर पूरा किया जा सके।
एकल शिक्षिका की ड्यूटी पर उठे सवाल
हालांकि, कुछ मामलों में इस आदेश की आलोचना भी हो रही है। उदाहरण के तौर पर, कन्या जूनियर हाईस्कूल कुंदनपुर की एकमात्र शिक्षिका प्रशांत कुमारी को राजकीय कन्या इंटर कॉलेज लाइनपार में हिंदी पढ़ाने के लिए भेजा गया है, जबकि उनके मूल स्कूल में कक्षा 6 से 8 तक के 150 छात्र हैं। यह कदम शिक्षकों की मौजूदा कमी को और गहरा सकता है, जिससे छोटे स्कूलों के संचालन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
प्राथमिक शिक्षा पर हो सकता है असर
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के महानगर अध्यक्ष राकेश कौशिक ने इस कदम की निंदा करते हुए कहा, "यदि प्राथमिक शिक्षक जीआईसी में पढ़ाने जाएंगे, तो 'निपुण भारत' के लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाएगा?" उनका मानना है कि शिक्षकों की कमी के कारण पहले से ही स्कूलों का संचालन शिक्षामित्रों पर निर्भर है। ऐसे में शिक्षकों की नई ड्यूटी व्यवस्था से प्राथमिक शिक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
विकल्पों की तलाश जारी
हालांकि, महानिदेशक स्कूल शिक्षा के मुताबिक, किसी भी शिक्षक को उनके मूल स्कूल से बाहर अन्य स्कूल या कार्यालय में नहीं लगाया जाएगा। लेकिन, शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए यह अस्थायी व्यवस्था की गई है। शिक्षा विभाग उम्मीद कर रहा है कि यह कदम शैक्षिक गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक साबित होगा, जब तक कि रिक्त पदों पर स्थायी भर्ती नहीं हो जाती।
शिक्षा प्रणाली पर दीर्घकालिक प्रभाव
अब देखना होगा कि यह अस्थायी समाधान कितना प्रभावी सिद्ध होता है और क्या यह कदम शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार ला पाता है। साथ ही, इस निर्णय से छोटे स्कूलों और प्राथमिक शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है।
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