सरकार को गुमराह कर रहे शिक्षा विभाग के अधिकारी, सीएम लें संज्ञान : हाईकोर्ट, तदर्थ शिक्षकों के नियमितीकरण पर भ्रामक परिपत्रों पर कोर्ट सख्त
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षकों के नियमतीकरण और वेतन भुगतान पर शिक्षा विभाग के अधिकारी सरकार को गुमराह कर रहे हैं। सही तथ्यों को छिपाकर सरकार से तरह-तरह के । भ्रामक परिपत्र जारी करवा रहे हैं। लिहाजा, मामला 48 घंटे के भीतर सीएम के समक्ष पेश कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। मामले में अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी
यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने जालौन के याची विनोद कुमार श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामला माध्यमिक विद्यालय में तैनात उन एक हजार तदर्थ शिक्षकों से जुड़ा है, जिन्हें नवंबर 2023 में बर्खास्त कर दिया गया था। उसके बाद तमाम अदालती आदेशों के बावजूद उनके समायोजन को लेकर कई परिपत्र जारी किए गए।
उन परिपत्र के आलोक में 1993 से 2000 के बीच नियुक्त शिक्षकों को 2000 के बाद नियुक्त शिक्षकों के समान समायोजन की कोशिश की जा रही है। इसके खिलाफ 2000 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा ने दलील दी कि विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) को संबोधित परिपत्र आठ जुलाई 2024 को जारी परिपत्र का हवाला दिया।
नियमितीकरण पर जल्द होगा फैसला : सरकार
अपर महाधिवक्ता अजीत सिंह ने सरकार का पक्ष रखा। बताया कि बाहर किए गए शिक्षकों के नियमितीकरण और समायोजन पर सरकार जल्द फैसला लेगी। मौजूदा मामले दो प्रकार के हैं, एक वर्ष 2000 से पहले नियमितीकरण से संबंधित है, जिसे धारा 33-बी, सी, एफ, जी के प्रावधानों के तहत निपटाया जाना है।
वहीं, जहां तक वर्ष 2000 के बाद की नियुक्तियों का सवाल है, उसे संजय सिंह (सुप्रा) के मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार निपटाया जाना है। इसके द्वारा 2000 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को निश्चित मानदेय के साथ 11 माह के लिए समायोजित किया जाएगा। इस संबंध में शिक्षा विभाग ने परिपत्र भी जारी किया है। वेतन भुगतान का मामला भी विचाराधीन है।
प्रदेश के हजार से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों के नियमितीकरण पर निर्णय जल्द होगा
सात अगस्त 1993 से 2000 के बीच नियुक्त अध्यापकों के मामले में सरकार का आश्वासन
हाई कोर्ट का आदेश मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री को 48 घंटे में भेजने का निर्देश
प्रयागराज । प्रदेश में हजार से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों के नियमितीकरण पर निर्णय जल्द लिया जाएगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता ने कहा कि सात अगस्त 1993 से दिसंबर 2000 के बीच नियुक्त इन अस्थायी अध्यापकों को नियमित करने पर शीघ्र ही सरकार निर्णय लेगी। कोर्ट ने कहा है कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सरकार को सही जानकारी नहीं दी। दो मुद्दों को आपस में मिलाकर भ्रमित किया और उलझा रखा है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने विनोद कुमार श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते तथ्य छिपाने वाले ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति मुख्यमंत्री के समक्ष पेश करने को कहा है। प्रकरण में अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी।
सरकार से सही तथ्य छिपाकर नौ नवंबर 2023 व आठ जुलाई 2024 को परिपत्र जारी कराया। कोर्ट ने निबंधक (अनुपालन) को कहा है कि 48 घंटे में आदेश की प्रति मुख्य सचिव को भेजें ताकि कार्रवाई के लिए इसे मुख्यमंत्री के समक्ष एक सप्ताह में पेश किया जा सके। याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, शिवेंदु ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे और सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने पक्ष रखा।
कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर अपर महाधिवक्ता ने आदेश के पालन के लिए कुछ समय मांगा। साथ ही आश्वासन दिया कि वह आदेश की जानकारी सरकार को देंगे। उम्मीद है कि सरकार सही निर्णय लेगी। निर्णय वर्ष 2000 के बाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजय सिंह केस में दिए गए फैसले के तहत लिया जाएगा। कहा गया कि सरकार इन अध्यापकों को वेतन देने पर भी विचार कर रही है, लेकिन पहले नियमितीकरण पर निर्णय लेना होगा।
याची के अधिवक्ता ने कहा, सरकार भ्रमित है, पूरी स्कीम पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने अंतरिम आदेश से अध्यापकों को वेतन देने व सेवा जारी रखने का निर्देश दिया है। इसके बावजूद सरकार ने आठ नवंबर, 2023 से वेतन भुगतान रोक रखा है। विशेष सचिव ने नै निदेशक माध्यमिक शिक्षा को आठ जुलाई 2024 को आदेश दिया कि जिन्हें नौ नवंबर 2023 से हटाया गया है, उनमें हाईस्कूल के अध्यापकों को 25 हजार व इंटरमीडिएट के अध्यापकों को 30 हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाए।
इस सर्कुलर का शिक्षा विभाग को पालन करना चाहिए, यह बाध्यकारी है। अपर महाधिवक्ता ने स्वीकार किया कि धारा 33जी का मुद्दा सरकार ने जवाबी हलफनामे में नहीं लिया है। इस पर कोर्ट ने कहा अधिकारी दो मुद्दों को एक साथ मिक्स कर सरकार को गुमराह कर रहे हैं। वे ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं, इस कारण सही निर्णय नहीं लिया जा रहा है।
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