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Thursday, September 12, 2024

NCPCR on MADARSA: अच्छी शिक्षा के हक से वंचित कर रहे मदरसे, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का सुप्रीम कोर्ट में बयान – मदरसे उचित शिक्षा के लिए अनुपयुक्त

NCPCR on MADARSA: अच्छी शिक्षा के हक से वंचित कर रहे मदरसे, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का सुप्रीम कोर्ट में बयान – मदरसे उचित शिक्षा के लिए अनुपयुक्त



नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मदरसे उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त और अयोग्य स्थान हैं। ये शिक्षा के लिए जरूरी माहौल और सुविधाएं नहीं दे पा रहे। बच्चों को औपचारिक, गुणवत्तापरक शिक्षा नहीं मिल पा रही है। मनमाने तरीके से काम करते हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं।


आयोग की ये लिखित दलीलें यूपी के मदरसा एक्ट को असांविधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर आई हैं। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को मामले पर सुनवाई करेगा। आयोग ने कहा कि मदरसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम व किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का उल्लंघन करते हैं। मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत नहीं आते, इसलिए इनमें पढ़ने वाले बच्चे न सिर्फ बाकी स्कूलों में मिलने वाली औपचारिक व जरूरी शिक्षा से वंचित रहते है, बल्कि उन्हें आरटीई अधिनियम के तहत मिलने वाले अन्य फायदे भी नहीं मिल पाते। यह बच्चे को शिक्षा प्रदान करने के मौलिक सांविधानिक अधिकार का उल्लंघन है। मदरसों का ज्यादातर जोर धार्मिक शिक्षा पर ही होता है, मुख्य धारा की शिक्षा में उनकी भागीदारी कम ही होती है।


भ्रामक फतवों का दिया हवाला
आयोग ने देवबंद में मौजूद दारुल उलूम मदरसे की वेबसाइट पर मौजूद कई आपत्तिजनक कंटेंट का भी हवाला दिया। आयोग के मुताबिक वेबसाइट पर एक फतवा नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध पर दिया गया था, जो न सिर्फ भ्रामक है, बल्कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का भी उल्लंघन है।


मिड डे मील, यूनिफार्म, प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी सुविधाएं नहीं
आयोग ने दलील दी कि मदरसों में बच्चों को मिड डे मील, यूनिफॉर्म और स्कूल में पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पातीं। मदरसे आरटीई अधिनियम, 2009 या किसी भी अन्य लागू कानूनों की आवश्यकताओं का पालन नहीं करते हैं।




मदरसों की शिक्षा का स्तर सही नहीं


नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि मदरसे में दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है। आयोग ने मदरसा शिक्षा को शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के खिलाफ बताया है।


आयोग ने शीर्ष अदालत में कहा, बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने के कारण मदरसा बच्चों के अच्छी शिक्षा के मौलिक अधिकार का हनन कर रहे हैं। आयोग ने कहा, मदरसे में बच्चों को न केवल उपयुक्त शिक्षा बल्कि स्वस्थ माहौल और विकास के बेहतर अवसरों से भी वंचित किया जा रहा है। मदरसे में गैर-मुस्लिमों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा भी दी जा रही जो अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है।


'कामिल और फाजिल' डिग्री के आधार पर नहीं मिल सकती नौकरीः यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर दी जाने वाली 'कामिल और फाजिल' डिग्री के आधार पर युवाओं को न तो राज्य और न ही भारत सरकार में नौकरी मिल सकती है। कोर्ट में दाखिल हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि मदरसा बोर्ड की डिग्रियों को को किसी यूनिवर्सिटी की डिग्री के समकक्ष नहीं हैं और न ही किसी बोर्ड के पाठ्यक्रम या विश्वविद्यालय के किसी डिग्री के विकल्प के रूप में मान्यता दी गई है। सरकार ने बताया कि ऐसे में, मदरसा बोर्ड से स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई करने वाले छात्र केवल उन्हीं नौकरियों के लिए ही योग्य हो सकते हैं जिनके लिए हाईस्कूल / इंटरमीडिएट योग्यता की आवश्यकता होती है।


काम करने का तरीका भी मनमानाः
आयोग ने कहा कि मदरसे में बच्चों को न केवल उपयुक्त शिक्षा बल्कि स्वस्थ माहौल और विकास के बेहतर अवसरों से भी वंचित किया जा रहा है। आयोग ने कहा कि ऐसे संस्थान में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे मुख्य धारा के स्कूल में प्रदान किए जाने वाले स्कूली पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित होंगे। एनसीपीसीआर ने मदरसा न सिर्फ शिक्षा के लिए असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल है बल्कि उनके काम करने का तरीका भी मनमाना है, जो पूरी तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया के अभाव में है।


कामिल-फाजिल डिग्री न्यूनतम शैक्षिक योग्यताएं

इसके अलावा, राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर, यूपी मदरसा बोर्ड अरबी-फारसी और दीनयात विषयों की शिक्षा के लिए विशेष पाठ्यक्रम क्रमशः कामिल और फाजिल डिग्री प्रदान करता है। यह मदरसों में अरबी- फारसी और दीनयात विषयों की शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक न्यूनतम शैक्षिक योग्यताएं हैं। यूपी सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो भी आदेश होगा, उसका पालन किया जाएगा।

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