मदरसों को मिलती रहेगी फंडिंग, सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR की सिफारिश पर लगाई रोक
■ 7 जून को आयोग ने जारी किए थे निर्देश
■ कोर्ट ने आयोग के निर्देश पर रोक लगाई
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के निर्देश पर रोक लगा दी। आयोग ने आरटीई 2009 का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता वापस लेने, उनमें पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूलों में समायोजित करने और फंडिंग रोकने की सात जून को सिफारिश की थी। शीर्ष अदालत ने एनसीपीसीआर के निर्देशों पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जा रही कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से एनसीपीसीआर के निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया है।
याचिका में एनसीपीसीआर के निर्देशों और इसके बाद केंद्र व राज्यों द्वारा की जा रही कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। कोर्ट ने एनसीपीसीआर और इसके बाद केंद्र और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा की गई या जा रही कार्रवाई पर रोक लगा दी है। पीठ ने मामले में केंद्र, एनसीपीसीआर व सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।
Supreme Court on Madarsa: NCPCR को सुप्रीम कोर्ट से झटका, मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूल में भेजने के निर्देश पर लगी रोक
उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट पर आधारित था। इसमें राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द करने को कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला लिया। उसने गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सभी छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने और मदरसों से गैर मुस्लिम छात्रों को हटाने के फैसले पर रोक लगा दी है।
किसने दायर की थी याचिका
उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के इस आदेश के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने याचिका दायर की थी। उत्तर प्रदेश सरकार का यह आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट पर आधारित था। इसमें राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द करने और सभी मदरसों की जांच करने को कहा गया था।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के इस कथन का संज्ञान लिया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के संचार और कुछ राज्यों की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की जरूरत है।
यूपी सरकार ने यह दिया था आदेश
अदालत ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों और सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन न करने के कारण सरकारी अनुदान प्राप्त/सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने की एनसीपीसीआर की सिफारिश और केंद्र तथा राज्यों द्वारा की गई कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
शीर्ष अदालत ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि एनसीपीसीआर द्वारा सात जून और 25 जून को जारी किए गए 27 जून तक के संचार पर रोक लगाई जाती है और इसके बाद उठाए गए सभी कदमों पर रोक लगाई जाती है। पीठ ने यह भी कहा कि राज्यों के परिणामी आदेशों पर भी रोक रहेगी।
न्यायालय ने मुस्लिम संगठन को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को अपनी याचिका में पक्षकार बनाने की भी अनुमति दे दी।
एनसीपीसीआर की रिपोर्ट में यह था
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि जब तक मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, तब तक उन्हें दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए।
विपक्ष ने किया था जोरदार विरोध
इस रिपोर्ट पर विपक्ष ने बीजेपी सरकार पर जमकर निशाना साधा था। इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर अल्पसंख्यक संस्थानों को चुनिंदा तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगाया था। इसके बाद एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा था कि उन्होंने कभी भी ऐसे मदरसों को बंद करने की मांग नहीं की थी, बल्कि उन्होंने सिफारिश की थी कि इन संस्थानों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद कर दी जानी चाहिए, क्योंकि ये गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं।
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