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Saturday, November 9, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने तय किए अल्पसंख्यक संस्थान के मानक, AMU पर नई पीठ करेगी फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने तय किए अल्पसंख्यक संस्थान के मानक, AMU पर नई पीठ करेगी फैसला


सात जजों की संविधान पीठ ने नौ माह बाद दिया निर्णय,  एएमयू का मामला अब भी लंबित

• एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान न मानने के अजीज बाशा मामले में दिए फैसले को किया खारिज 

• 4:3 से निर्णय, जस्टिस दीपांकर दत्ता ने घोषित किया, एएमयू अत्पसंख्यक संस्थान नहीं है


नई दिल्लीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर नौ महीने से सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित था। नौ महीने बाद शुक्रवार को आए फैसले में भी यह मामला लटका रह गया है। अब तीन सदस्यीय नई पीठ एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुनवाई करके फैसला देगी। सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शुक्रवार को चार-तीन के बहुमत से दिए फैसले में किसी संस्थान को अल्प संख्यक संस्थान माने जाने के आधार और मानक तय कर दिए, लेकिन कोर्ट ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर कोई व्यवस्था नहीं दी। कहा कि एएमयू का मामला नियमित पीठ के सामने जाएगा, जो इस फैसले में दी गई व्यवस्था के आधार पर तय करेगी कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है कि नहीं। कोर्ट ने बहुमत से दिए फैसले में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानने वाले 1967 के अजीज बाशा मामले में दिए फैसले को खारिज कर दिया है।


एएमयू के लिए यह राहत की खबर है, क्योंकि उसके अल्पसंख्यक दर्जे में यही फैसला बड़ी बाधा थी। अब एएमयू को नियमित पीठ के समक्ष साबित करना होगा कि संविधान पीठ द्वारा तय मानकों के मुताबिक वह अल्पसंख्यक संस्थान है। पांच जजों की पीठ ने अजीज बाशा मामले में दिए फैसले में कहा था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के जरिये हुई है। इतने वर्षों से यही फैसला एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की राह का रोड़ा बना हुआ था। इसी - आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए किए गए कानून संशोधन को रद कर दिया था।


संविधान पीठ के फैसले के मुताबिक प्रधान न्यायाधीश एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले पर सुनवाई के लिए नियमित पीठ का गठन करेंगे। नई पीठ तीन न्यायाधीशों की हो सकती है। वह पीठ तय करेगी कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है कि नहीं। इसके साथ ही नियमित पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के मलय शुक्ला मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर भी सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जाएगा। एएमयू ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में पहले से भी मामला लंबित था, जिसमें अजीज बाशा फैसले को पुनर्विचार के लिए सात जजों को भेजा गया था। 


12 फरवरी, 2019 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपीलों पर सुनवाई करते हुए यह मामला सात जजों की पीठ को विचार के लिए भेज दिया था। शुक्रवार को सीजेआइ डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने चार तीन के बहुमत से उपरोक्त फैसला दिया। कुल चार फैसले दिए गए, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्वयं और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पार्टीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से बहुमत का फैसला दिया। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता व जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताने वाले अलग से फैसले दिए हैं। सातों जजों में सिर्फ जस्टिस दीपांकर ने स्पष्ट रूप से घोषित किया है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और उसका अल्पसंख्यक संस्थान का दावा खारिज होता है।


सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को संविधान में अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देने वाले अनुच्छेद 30 की व्याख्या की है। अनुच्छेद 30 कहता है कि अल्पसंख्यक चाहें वे भाषाई अल्पसंख्यक हों या धार्मिक, उन्हें पसंद का शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 30 (1) भेदभाव के विरुद्ध प्रविधान व विशेष अधिकार देने वाले प्रविधान दोनों तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है। कोई कानून या कार्रवाई जो धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थान स्थापित करने या उनका प्रशासन करने के साथ भेदभाव करता है, वह अनुच्छेद 30 (1) के खिलाफ है। अगर किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को प्रशासन में ज्यादा स्वायत्ता की गारंटी दी गई है तो यह प्रविधान में विशेष अधिकार के तौर पर पढ़ा जाएगा।


जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अल्पसंख्यकों को साबित करना होगा कि उन्होंने अनुच्छेद 30 (1) के उद्देश्य से समुदाय के लिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान स्थापित किया है। फैसले में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत मिला अधिकार संविधान लागू होने के पहले स्थापित किए गए विश्वविद्यालयों पर लागू होगा। 



इन मानकों के आधार पर तय होगा अल्पसंख्यक दर्जा

• संस्थान स्थापित करने का विचार उद्देश्य व कार्यान्यवयन देखा जाएगा वह संतुष्ट करने वाला होना चाहिए

• अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना का विचार हर हाल में अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति या समूह की ओर से आना चाहिए

• शैक्षणिक संस्थान प्रभावी तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के लाभ के लिए ही होना चाहिए

• अल्पसंख्यक संस्थान स्थापित करने के विचार के कार्यान्वयन के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा कदम उठाया गया हो

• शैक्षणिक संस्थान का प्रशासनिक ढांचा अल्पसंख्यक चरित्र का होना चाहिए

• इसकी स्थापना अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की रक्षा और प्रोत्साहन के लिए होनी चाहिए

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