एआरपी पदों पर कार्यरत शिक्षकों को थोड़ी राहत, हाईकोर्ट ने कहा, विज्ञापन जारी करने से पहले प्रत्यावेदनों पर लें निर्णय
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एकेडमिक रिसोर्स पर्सन (एआरपी) के मामले में बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव को आदेश दिया कि एआरपी पद पर पूर्व में कार्यरत शिक्षकों के पुनः आवेदन करने हेतु प्रत्यावेदनों पर जल्द निर्णय लें। न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की एकल पीठ ने यह आदेश सुशील कुमार द्विवेदी, विवेक तिवारी व अन्य कर्मियों की याचिका पर दिया।
याचियों की ओर से कहा गया कि 10 अक्तूबर 2024 को शासनादेश जारी कर तीन साल से कार्यरत लगभग चार हजार एआरपी को आगे होने वाली परीक्षा में शामिल होने से रोका गया है, जोकि कानून की मंशा के खिलाफ है। कोर्ट ने मामले में याचियों को तीन दिन में प्रत्यावेदन देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि एआरपी पदों के लिए नया विज्ञापन जारी करने से पहले, विभाग को वर्तमान कर्मचारियों के प्रत्यावेदनों पर निर्णय लेना होगा।
कोर्ट ऑर्डर 👇
ARP : पूर्व में कार्यरत एआरपी की नए आवेदन हेतु आवेदन करने की अनुमति देने हेतु हाईकोर्ट में दायर याचिका खारिज,
मामला तीन दिनों के अंदर संबंधित उच्च अधिकारी के पास प्रस्तुत करने और संबंधित द्वारा विधि अनुसार निर्णय लेने का आदेश
23 जनवरी 2025
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि मामला तीन दिनों के अंदर संबंधित उच्च अधिकारी के पास प्रस्तुत किया जाए। अधिकारी को कानून के अनुसार, पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से एक सप्ताह के भीतर निर्णय लेना होगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि उनकी किसी भी टिप्पणी का निर्णय पर सीधा प्रभाव न पड़े।
कोर्ट आदेश का अर्थ निम्नलिखित है:
🔴 कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग के Additional Chief Secretary/Principal Secretary (मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव) को निर्देश दिया है कि वे संबंधित मामले में तीन दिनों के भीतर आवश्यक कार्रवाई करें।
🔴 इसके बाद, जवाबदेह अधिकारी (Respondent No. 1) को एक सप्ताह के भीतर मामले का निर्णय लेना होगा।
🔴 निर्णय लेने के दौरान, संबंधित अधिकारी को कानून के अनुसार कार्य करना होगा।
🔴 कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि निर्णय लेने में इस आदेश में की गई टिप्पणियों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यानी निर्णय स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से लिया जाना चाहिए, न कि कोर्ट की किसी विशेष टिप्पणी से प्रभावित होकर।
कोर्ट ने निर्देश दिया है कि मामला तीन दिनों के अंदर संबंधित उच्च अधिकारी के पास प्रस्तुत किया जाए। अधिकारी को कानून के अनुसार, पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से एक सप्ताह के भीतर निर्णय लेना होगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि उनकी किसी भी टिप्पणी का निर्णय पर सीधा प्रभाव न पड़े।
No comments:
Write comments