नर्सरी व प्राथमिक स्कूल सिर्फ स्थानीय निर्माण उपनियमों के अनुसार बने भवनों में चलाए जाएं – सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देश में नर्सरी और प्राथमिक स्कूलों को स्थानीय निर्माण उपनियमों के अनुसार निर्मित भवनों में चलाया जाना चाहिए। जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की याचिका पर यह आदेश पारित किया। सीबीएसई ने सुप्रीम कोर्ट के 13 अप्रैल, 2009 के फैसले में जारी निर्देशों पर स्पष्टीकरण मांगा था।
सीबीएसई ने जिन निर्देशों पर स्पष्टीकरण मांगा था, उनमें से एक में कहा गया है कि नर्सरी और प्राथमिक विद्यालयों को एक मंजिला इमारतों में बनाया जाना चाहिए और स्कूल भवनों में मंजिलों की अधिकतम संख्या भूतल समेत तीन तक सीमित होनी चाहिए। इसके अलावा सीढ़ियों पर भी स्पष्टीकरण मांगा गया था।
पीठ ने कहा कि इसमें बच्चों की त्वरित निकासी सुनिश्चित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता, 2005 के प्रावधानों का पालन करना चाहिए। सीबीएसई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 2009 में आग के खतरों को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिए थे। ऐसे कई राज्य हैं जहां उनके भवन उपनियमों में अग्नि सुरक्षा तंत्र के साथ चार मंजिला, पांच मंजिला (इमारतों) की अनुमति है।
■ सीबीएसई के मानक निर्देशों के अनुसार...
मेहता ने कहा कि सीबीएसई के मानदंड सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2009 में जारी निर्देशों के अनुरूप हैं। न्यायालय के 2009 के निर्देशों के बाद लागू हुई राष्ट्रीय भवन संहिता, 2016 और अन्य राज्यों ने भी अपने उपनियमों में तदनुसार बदलाव किया। मेहता ने कहा, अब मुश्किल यह है कि जब हमें मान्यता के लिए आवेदन मिलता है, तो हम पुराने निर्देशों पर जोर देते हैं। राज्यों के संबंधित भवन उपनियम, जो वैधानिक प्रकृति के थे, अग्नि सुरक्षा उपायों के साथ ऊंची मंजिलों (इमारतों) की अनुमति देते थे। मेहता ने कहा, हमारी (सीबीएसई) मांग है कि इसमें ढील दी जाए।
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