बोर्ड का गठन न होने से अटका मदरसा अधिनियम में कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की डिग्रियां हटाने का संशोधन, शासन को प्रस्ताव भेजने से पहले मदरसा बोर्ड का लेना होगा अनुमोदन
05 फरवरी 2025
लखनऊ। उप्र. मदरसा शिक्षा बोर्ड का गठन न होने से मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम-2004 में संशोधन अटक गया है। इसके तहत कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) की डिग्रियां इस अधिनियम के दायरे से बाहर की जानी हैं। शासन को संशोधन प्रस्ताव भेजने से पहले मदरसा शिक्षा बोर्ड से अनुमोदन लेना अनिवार्य होता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसा अधिनियम को असांविधानिक करार दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई तो शीर्ष कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यूपी मदरसा अधिनियम के सभी प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करते हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बारहवीं कक्षा से आगे कामिल और फाजिल का प्रमाणपत्र देने वाले मदरसों को मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि, उच्च शिक्षा यूजीसी अधिनियम के तहत संचालित होती है।
अधिनियम के दायरे से बाहर की जानी हैं कामिल और फाजिल की डिग्रियां
बता दें कि उप्र. मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम-2004 में बोर्ड की शक्तियां बताई गई हैं। इसमें कहा गया है कि मदरसा बोर्ड मुंशी, मौलवी, आलिम, कामिल और फाजिल पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं का संचालन करेगा। इस एक्ट के आधार पर ही उप्र. अशासकीय अरबी और फारसी मदरसा मान्यता, प्रशासन और सेवा विनियमावली, 2016 तैयार की गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर यूपी में मदरसा अधिनियम और नियमावली में संशोधन होना है।
शासन के सूत्र बताते हैं कि संशोधनों का प्रस्ताव पहले मदरसा बोर्ड से पास होगा। वर्तमान में वहां न तो कोई अध्यक्ष है और न ही सदस्य। बोर्ड के निवर्तमान अध्यक्ष और चारों सदस्यों का कार्यकाल अक्तूबर में ही समाप्त हो चुका है। इसलिए बोर्ड के इन पदों पर तैनाती के बाद ही संशोधन प्रस्ताव की गाड़ी आगे बढ़ पाएगी।
मदरसों में अब कामिल (स्नातक) और फाजिल (परास्नातक) की नहीं होगी पढ़ाई, मदरसा शिक्षा परिषद ने जारी किया आदेश
दोनों डिग्रियों की भाषा विश्वविद्यालय से संबद्धता पर नहीं हुआ निर्णय
दोनों पाठ्यक्रमों के 37000 विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर असमंजस बना
03 फरवरी 2025
लखनऊ। मदरसों में अब कामिल (स्नातक) और फाजिल (परास्नातक) की कक्षाएं नहीं संचालित होंगी। मदरसा शिक्षा परिषद ने इस संबंध में आदेश जारी किए हैं। हालांकि, पहले से पढ़ रहे विद्यार्थियों पर अब तक शासन स्तर पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। ऐसे में करीब 37000 छात्र-छात्राओं के भविष्य पर असमंजस बना है।
उप्र. मदरसा शिक्षा परिषद की कामिल और फाजिल की डिग्री को यूजीसी से मान्यता नहीं है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इन डिग्रियों को असांविधानिक घोषित कर दिया था। इसके बाद मदरसा शिक्षा परिषद ने दोनों पाठ्यक्रमों में नए प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इन डिग्रियों की भाषा विश्वविद्यालय से संबद्धता का मामला शासन से तय होने के बाद पढ़ रहे विद्यार्थियों के भविष्य पर फैसला होना था, लेकिन इस निर्णय से पहले ही कक्षाएं बंद करने का निर्णय हो गया है।
रजिस्ट्रार आरपी सिंह ने सभी जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को पत्र भेज कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से डिग्री असांविधानिक घोषित होने के बाद मदरसों में कामिल और फाजिल का पठन-पाठन या अध्यापन नहीं किया जा सकता है। दोनों पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों का मामला हाईकोर्ट में है। कोर्ट के निर्णय के बाद इस पर फैसला होगा। संवाद
37000 विद्यार्थियों के भविष्य पर खतरा
मदरसा परिषद से मान्यता प्राप्त और अनुदानित 16460 मदरसों में कामिल प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष में करीब 28000 और फाजिल के प्रथम व द्वितीय वर्ष में करीब 9000 विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। मदरसा एजुकेशनल एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद दोनों पाठ्यक्रमों के 37000 विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर असमंजस बना हुआ है।
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