शिक्षक पुरस्कार
बेहतर होगा कि राज्य शिक्षक पुरस्कार के निर्धारित मानकों पर एक बार पुनः विचार किया जाए
राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए प्रदेश के 75 में से 46 जिलों से एक भी आवेदन न आना सवाल खड़े करता है। जिन जिलों से आवेदन आए भी हैं तो उनकी संख्या इतनी न्यून है कि अब बेसिक शिक्षा अधिकारियों को शिक्षकों को आवेदन के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ऐसा संभव नहीं कि लाखों शिक्षकों वाले परिषदीय स्कूलों में ऐसे शिक्षक न हों जिन्हें पुरस्कृत किया जा सके या शिक्षकों में सम्मान पाने की ललक न हो। वास्तविकता यह है कि इस पुरस्कार के लिए बनाए गए मानक अव्यावहारिक हैं।
परिषदीय प्राथमिक विद्यालय जहां पर 150 छात्र हों और उच्च प्राथमिक विद्यालय जहां पर 100 छात्र हों, वहां के शिक्षक पुरस्कार के लिए आवेदन करने के पात्र होते हैं। यह छात्र संख्या बेहद कम विद्यालयों में ही संभव है। आवेदक शिक्षक की न्यूनतम 15 वर्ष की सेवा भी होनी चाहिए। यह तालमेल बैठाना ही टेढ़ी खीर है। जिन विद्यालयों में छात्र संख्या है, वहां अनुभवी शिक्षक नहीं हैं और जहां अनुभव है, वहां छात्र संख्या नहीं है। ऐसे में बेहतर होगा कि पुरस्कार के निर्धारित मानकों पर पुनः विचार किया जाए। बड़ी संख्या में भर्ती हुए युवा शिक्षकों में बेहतर करने की ललक हैं, उन्हें भी अवसर देना चाहिए। इसके पीछे यह धारणा भी हो सकती है कि पुरस्कार जुगाड़ से मिलते हैं।
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